आलोचना और निंदा में अंतर critique-and-condemnation-in-the-difference-article

 निंदा साधारण शब्दों में बुराई करना है ।

 critique-and-condemnation-in-the-difference-article - किसी के कार्यों को पसंद न करना है । जो झूठ पर आधारित हो सकता है या फिर सच पर । पीठ पीछे की जाय तो चुगली है । खुले रूप में करें तो गलत कामों का विरोध करना है । जो प्रत्यक्ष रूप से निंदा करते हैं । उसकी बातों में सच्चाई होती है । जो किसी कार्य में सुधार की उम्मीद रखते हैं । वह किसी की बातों को बढ़ चढ़ा कर नहीं कह सकते हैं । अगर कुछ झूठ को शामिल करते हैं तो वे भी चुगली कर्ता है । जबकि जो पीठ पीछे करते हैं । वो मनगढ़ंत बातें बताते हैं । जिसका कोई सिर पैर नहीं होता है। दूसरों की छवि गिराने के लिए । खुद की नफ़रत को सही साबित करते हैं । ऐसे लोग केवल नफरती सोच के होते हैं । जो केवल बुराई के बारे में ही बातें करते हैं । ऐसे लोग बुद्धिहीन की श्रेणी में गिने जाते हैं ।

critique-and-condemnation-in-the-difference-article- आलोचना तटस्थ भाव से की जाती है- 

आलोचना तटस्थ भाव से की जाती है । गुण दोष को देखकर । किसी के प्रति संवेदना नहीं रखी जाती है । जो किसी कार्य, व्यक्ति के चरित्र, प्रकृति, कारण आदि बातों का ध्यान रखते हैं । नफ़रत के भाव नहीं होता है । सुधार की भावना से की गई आलोचना श्रेष्ठ है । ऐसे आलोचना करने वालों को बुद्धिमानों की श्रेणी में गिना जाता है । ध्यान रहे आजकल की आलोचना नफरतों भरी होती है । जो सामने वाले को थकाने, जलाने और विचारों को थोपने के लिए की जाती हैं ।

निंदा और आलोचना में अंतर 

निंदा और आलोचना में अंतर कर्ता की समझ पर निर्भर करता है । निंदा जहां सीमित नजरिए से की जाती है वहीं आलोचना व्यापक दृष्टिकोण से । जिसका उद्देश्य में भी व्यापक अंतर होता है । आलोचना की स्वीकृति बहुत बड़े वर्ग द्वारा की जाती है जबकि निंदा जिसके सामने की जाती है । उसके द्वारा ।


तुमने सुधार की भावना से नहीं कहीं

कोई बात

मुझे भीतर-भीतर महसूस हुआ

तेरी आधात 

तुम कहते रहे मुझे अपना

तेरी सियासत की थी

एक चाल !!!

जिस चाल को तुमने

दर्शन कहा था

बस सियासी हथकंडा

अपनाया था !!!

मेरे दोस्त

ढोंग यदि साधु संत करते हैं

तो तुम भी कम नहीं करते हो

तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग बनकर

चुपके से तुमने विचार बदलने की कोशिश की हो

जिसे मैंने आधुनिक दृष्टिकोण समझ बैठा

तुम्हारी चालाकी को

तुम्हें सुना क्या मैंने

अपना विचार थोपना शुरू कर दिया

मेरी भावनाओं को मारकर

अपनी आलोचनाओं से

नष्ट कर

स्थापित करना चाहा

अपना एजेंडा !!!!

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-राजकपूर राजपूत

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