निंदा या बुराई करने वाला slander-or-evil-doer-article-literature-life

- निंदा -का अर्थ है कि slander-or-evil-doer-article-literature-life किसी के चरित्र, गुण, विशेषताओं को नफ़रत करते हुए दूसरों के सामने अवगुण के रूप में प्रस्तुत करना । इसे अक्सर पीठ पीछे किया जाता है । 

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 लोग बुराई क्यों करते हैं - 

बुराई जो ज्यादातर लोगों के दिनचर्या में शामिल हैं । बुराई करने के सिवाय कुछ काम नहीं है । तो आइए देखते हैं कि बुराई के मूल प्रवृत्ति कारण और उद्देश्यों को ---

ध्यान देना जो हमसे जुड़ें हुए हैं । जो हमें जानते हैं या किसी भी तरीके से कुछ संबंध है । जिसको हमारे काम की वजह से अपनी छवि का नुकसान होने का डर है या जिसके सामने आने से उसके भीतर हीनता का भाव आ जाता है ।   हमारे सामने उसकी कीमत कम हो जाती है । ऐसे लोग कुछ भी कह सकते हैं । लकीर काटकर । अपनी छवि सुधारेंगे । हमारी बिगाड़ेंगे । ऐसा करके उसे कुछ वक्त तसल्ली होगी । बेशक मिलेगा कुछ नहीं । 

शुद्ध बुराई आलोचना है न कि अपराध- 

मगर कुछ लोग ऐसे भी हैं जो बुराई तो करते हैं लेकिन सच्चाई के साथ । ऐसे लोगों की जो अपनी छवि अच्छी तो बनाई हुई है लेकिन है अच्छे नहीं । ऐसे लोगों की बुराई करना आलोचक की श्रेणी में आते हैं । जो सुधार भावनाओं से करते हैं । 

बुराई के खतरनाक उद्देश्य-

लेकिन इन्हीं बातों को जब सियासत की दृष्टि से उद्देश्य की प्राप्ति के लिए करते हैं । तो एक साज़िश है । जो योजना बनाकर की जाती है । ताकि अपने विरोधियों को

नीचा दिखाकर खुद को अच्छा साबित कर सके है । 

इससे ज्यादा खतरनाक किसी विचारधारा को लोगों में थोपने के लिए किया जाता है । जो चुपके से किसी की बुराई करते हैं । अपने एजेंडे को स्थापित करने के लिए । खुद के छवियों को अच्छे रूपों में दिखाते हैं । जिसका अच्छा उदाहरण फिल्मी दुनिया है । बाकी आप ढूंढ सकते हैं । 

इससे भी इतर कुछ लोग होते हैं जो या तो खाली पीली बैठे हैं या कामजोर है । जिसके पास फुर्सत है । चुगली आदि करने के लिए,,, तो क्या करेंगे  !  ऊलजुलूल बातों में दिन काटेंगे । ताकि उसे भी लगे । कुछ तो जानता है । उसे भी अपनी उपस्थिति अपने जैसे लोगों को जो देनी है ।

बुराई को कैसे समझा जाय- 

अंततः कहा जा सकता है कि किसी की बुराई करने के कारण, उद्देश्य और प्रकृति उसके इरादे पर निर्भर करता है । जिसे समझना हमारी समझ पर निर्भर करता है ‌‌। हम किस स्तर के हैं ।  हमारी परखने की क्षमता इस बात पर निर्भर करती है कि हम किसी विचार की सच्चाई कितनी जल्दी पहचानते हैं और सहते हैं । 

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-राजकपूर राजपूत

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