आजकल रिश्ते इतने उलझे हुए हैं कि पहचान भी नहीं पाते कौन अपना है, कौन पराया है ।Peeth pe khanjar meregeet अच्छी बातों में इतने परांगत है कि स्पष्ट पहचान नहीं पाते हैं । चालाकी का मुखौटा लगाकर हमारे बीच में रहते हैं । जो जरूरत पड़ने पर दूर होने का अहसास दिला देते हैं । सहयोग, अपनापन, प्रेम, और अच्छा इंसान बनने का ढोंग तब तक किया जाता है जब तक उसकी जरूरत की आवश्यकता महसूस न हो । वर्ना हाथ छुड़ाकर भाग जाते हैं ।
कविता हिन्दी में 👇👇
Peeth pe khanjar- meregeet
किसी ने दोस्त बनकर
पीठ में खंजर घोंपकर
मुस्कुराया है मेरे सामने
किसी और का नाम लेकर
मैं जानता था वो मेरा अपना है
लेकिन रहा मैं अनजान बनकर
वो देते रहे अपने ईमान का वास्ता
मैं चुप ही रहा उसकी नीयत पहचान कर
हर जगह मतलबी लोग हैं यहां
सबको अच्छा लगता है मतलब निकालकर
इतनी मीठी बातें हैं उसकी
डर लगता है उसके इरादे देखकर
मैं अच्छा नहीं तो बुरा भी नहीं हूं
उसे क्या मिला पीठ पे खंजर घोंपकर
शिक्षित होने का दावा किया है
रिश्ते बनाते/बिगाड़ते हैं मतलब देखकर
अगर अच्छी सोच है यही तो सही
हर कोई कोशिश करते हैं चालाकी अपनाकर !!!
पीठ पर खंजर घोंपा नहीं
ये विश्वास का एक धोखा नहीं
मैं झुका था उसके सामने
रिश्तों का विश्वास देखा नहीं !!!
पीठ पर खंजर मारने वाले
यह जानते हैं कि
यह मेरे है
जिसके सामने से मुकाबला करना
कठिन है
बात नैतिकता की है
खुद के नजरों से गिरा नहीं है
जिसे बनाने है
और दुनिया से छुपाना है ।
घर से निकलते ही
सोच लिया था
मुझे अपने लिए जीना है
मतलब साधना
और तैयार रहना
पीठ पे खंजर घोपने के लिए
आजकल की समझदारी है !!!
मैं जानता हूं कविता हिन्दी में
इन्हें भी पढ़ें 👉 मार्ग दर्शक और आप
0 टिप्पणियाँ