जब कोई किसी व्यक्तिगत गलती को सामुहिक रूप से कहते हैं तो वह उस व्यक्ति को इंगित नहीं कर पाते हैं ।personal-mistakes-and-wisdom-articles-in-hindi जिसके लिए कहा जाता है ।
जिस व्यक्ति को कहना है । उसे खुले रूप में दोषी ठहरा नहीं पाते हैं ।
ऐसे में अपराधी समझ भी जाए तो भी उसे फ़र्क नहीं पड़ेगा । क्योंकि वो उस भीड़ में बच सकता है । जिस भीड़ की वजह से सामने वाले व्यक्ति कहने की हिम्मत करते हैं ।
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ये अलग बात है कहने, सुनने और समझने वाले समझ जाते हैं । लेकिन उसके समझ में भी वही समझ आते हैं जो कहने वाले ने जिस डर से कहीं गई है । उसे भी यदि नैतिकता का भान हो भी जाए तो भी उस दायित्वों का परवाह नहीं करते हैं । बस मौका मिले तो बिल्कुल उसी सुविधा में बदला लेंगे जो अभी कह रहे हैं । मतलब वो भी अदृश्य हो कर । पीठ पीछे ।
ऐसे रूप में कहने वालो एक प्रकार से समझदारी दिखाते हैं तथा सुनने वाले भी । ताकि कुछ बात बिगड़ जाए तो फिर से संभाल लें । परिस्थिति को । मतलब बचने की पुरी गुंजाइश होती है । ऐसे लोग खुले रूप में तभी कहते हैं जब एक बहुत बड़ा वर्ग या समूह समझते हैं । बाकी व्यक्तिगत जीवन में ऐसे ही बचकर निकलते हैं । जो उसकी कायरता है या फिर व्यक्तिगत लाभ के कारण समझदारी ।
ध्यान रहे व्यक्तिगत जीवन ही आजकल मायने रखते हैं । सामाजिक भावनाएं का कोई महत्व नहीं है । अपने व्यक्तिगत लाभ को सामूहिक रूप से नहीं कहा जाता है । जैसे रिश्वत लेना और देना । या अन्य अपराधिक मामले ।
गलतियां
सबसे होती है
बस अंतर यही है
कुछ लोग मानते नहीं
कुछ लोग जानते नहीं
अपनी गलतियां
और साबित करने लगते हैं
खुद को
सच की तरह
जबकि गलतियां करने वालों को
पता नहीं
उसके सिवा सब जानते हैं
क्या है सच ?
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