-I-write-despair-now-then-poetry
मैं अब निराशा लिखूंगा तो
तुम बुरा मान जाओगे
जबकि हकीकत है
कहोगे समाज को दें क्या रहे हो
कुछ आशा भरो
कुछ विश्वास भरो
तो कोई बात बने
एक संदेश दो जगाने का
समाज को
लेकिन तुम्हें पता नहीं
लोग अब अभ्यस्त हो चुके हैं
अच्छी बातों का
जो जानते हैं
अपनाते नहीं है आजकल
अब लड़ाई कर्तव्यों की नहीं रही
न त्याग की
न समर्पण की
न प्यार की
न जज़्बात की
बस अधिकार है
जिसे लेना जानते हैं
किसी भी हालत में
बाकी जीवन को
दरकिनार कर दिया है
इस दुनिया ने
धीरे - धीरे
इसलिए मैं निराशा लिखूंगा
जिसके तुम अभ्यस्त नहीं हो !!!!
हकीकत लिख दिया
तो सहन नहीं कर पाओगे
अभी जितना अपनापन है
कहां दे पाओगे
तुम्हें दिखावा और झूठ की जिंदगी पसंद है
सच कहां सुन पाओगे
इसलिए तेरे मनमाफिक बातें होंगी
मुझे दुश्मन नहीं बनाना है
किसी को !!!
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