spiritual-life-on-article-hindi आध्यात्मिक जीवन जी पाते हैं ।
जिसे अपनी प्रकृति की वजह से साधारण जन देख नहीं पाते हैं । समझ नहीं पाते हैं । खुद को । उलझे रहते हैं, अपनी इंद्रियों की वजह से । उसके रसास्वादन में । भीतर ही भीतर । चिंतन करते हुए । जिसके कारण उसकी दृष्टि उस चेतन तत्व की ओर जाते भी नहीं है । उसकी प्राथमिकता उसकी चाहत पे निर्भर करता है । जिसको वो सजाते हैं । उसी में मन लगाते हैं । कभी अपनी सोच से बाहर जाते भी नहीं है । जिसकी वजह से दूसरा भाते भी नहीं है । दुनिया समझाए लेकिन न माने ।
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ठीक विपरीत आध्यात्मिक जीवन जीने वाले होते हैं । व्यापकता की दृष्टि होती है । जिसमें सबको स्वीकार करने की क्षमता होती है । प्रकृति में रहकर निर्लिप्तता का भास करते हैं । न कोई छोटा न कोई बड़ा होता है जिसकी नजरों में । न कोई स्त्री न कोई पुरुष में अंतर करता है । बाह्य शारीरिक संरचना से ऊपर उठकर उस आत्मा का दर्शन करते हैं । जो सबका मूल कारण है ।
ईश्वर का ध्यान रखने से
ईश्वर नहीं मिल जाता है
जब तक बातें नहीं होगी
अपनी कमियों को बताओगे नहीं
उसकी क्षमताओं को पहचानोगे नहीं
सम्पर्क स्थापित नहीं होगा
उन निर्देशों का पालन
जो ईश्वर ने सबको बताया है
दया , करूणा , त्याग तपस्या आदि
आत्मसात करना होगा
किसी को उपदेश देने से पहले
तुम्हें टूटना भी नहीं है
उन नास्तिकों से
जिसने तर्कशील होने का ढोंग कर रखा है
जैसे कुछ भीमटे
स्वयं घोषित वैज्ञानिक बन गए हैं
उन्हें जवाब देना होगा
यदि नहीं कर पाते हो
तो ईश्वर तुम्हें मिल नहीं सकता है !!!!
ईश्वर कोई प्रयोगशाला नहीं है
जिसे आजमाया जाए
जैसा कि तथाकथित बुद्धिजीवी
आजकल करते हैं
अपनी भूख की पूर्ति की उम्मीद
ईश्वर से !!!!
आध्यात्मिक जीवन
गूंगे-बहरे की तरह है
जो अनुभूति में जिते है
अनुमान से नहीं !!!!
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