अच्छे साहित्यकार होना अलग बात है । मगर अच्छे इंसान होना अलग बात है । शब्दों को लय में बांधना । भावों को सुसज्जित,, करना अलग बात है । जो लिखने के लिए कहीं से या किसी कारण की वजह से उत्पन्न हो जाते हैं ।भाव आवेश में कहीं गई बातें पूर्ण रूप से सत्य नहीं है । जो चढ़ते उतरते हैं । किसी कारण से । वे व्यक्तित्व का कारण नहीं बनते हैं । जो क्षणिक है । जबकि एक सोच स्थायी रूप से व्यक्ति में झलकता है । जो बड़ी बड़ी बातों के कहने से नहीं बनता है । व्यवहार में दिखना चाहिए । जो कहते हैं । उसे खुद जीना चाहिए असल जिंदगी में । यदि ऐसा नहीं कर पाते हैं तो वे व्यर्थ की बातें करते हैं । बाहरी दुनिया में । किसी झूठे इंसान की तरह !
---राजकपूर राजपूत''राज''।
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