किसी कार्य विशेष में परांगत होना
उस कार्य की परिपक्वता है । उस व्यक्ति के लिए । जिसमें वे परांगत है ।
परिपक्वता के कई आयाम हो सकते हैं ।
जैसे शारीरिक रूप से प्रबलता, मानसिक रूप में निपुणता या फिर आत्मिक शक्ति की प्रचुरता आदि । maturity-article-in-hindi.
सत्य नहीं । जब तक उसके कार्य करने की क्षमता दिखाई न दे (उसके कार्यों में)तब तक कहॉं नहीं जा सकता है कि वह परिपक्व हो गया है ।
परिपक्वता वहीं पंगु प्रतीत होता है
किसी बच्चे को हम तब तक परिपक्व नहीं मानते हैं
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ऐसी उम्र का निधार्रण कल्पित है । सत्य नहीं ।जिसे हम एक नज़र में स्वीकार करने को विवश हो सकते हैं । किसी वयस्क को देखकर । बड़े होने के बाद लोगों से ऐसी ही उम्मीद करते हैं ।
यदि कोई शारीरिक रूप से बलिष्ठ जान पड़े तो (बाहृय रुप में जो दिखाई देते हैं)हमारा अनुमान वहीं जाकर टिकता है कि अमुक व्यक्ति काबिल हो गया है । किसी कार्यों को करने के लिए और हम स्वीकार कर लेते हैं ।
जहॉं आदमी बलिष्ठ जान तो पड़ता है लेकिन उसके कामों में प्रगट नहीं होते हैं । कभी कभी शारीरिक रूप से बलिष्ठ आदमी बौद्धिक रूप से अत्यंत कमजोर होते हैं । ऐसे में इंसान अक्सर हॅंसी के प्रात्र बनते हैं । उसके कार्य करने की क्षमता बौद्धिक कमी की वजह से निपुणता नहीं आती है । जो काम आसानी से हो जाते उसमें वो समय लेने लगते हैं ।
जब तक उसकी उम्र सामाजिक दृष्टिकोण के द्वारा निर्धारित सीमा तक नहीं पहुंच पाती है । जैसे सोलह/सत्रह वर्ष की आयु । ऐसा सोचना समाज और माता पिता के अपने निजी अनुभव है । (जो जरूरी नहीं है कि स्वयं परिपक्व हो । उसकी कही बातें सत्य की लक्ष्मण रेखा हो । कभी कभी पूरे समाज को भी दकियानूसी सोच से शोभित होते हुए देखें हैं । जबकि परिपक्वता किसी उम्र, व्यक्ति,या समाज से परे हैं । )
जहॉं पहुंच कर औसत बच्चे परिपक्वता का अहसास कराते हैं । शारीरिक और मानसिक रूप में दिखाई देने लगते हैं । कुछ निर्णय स्वयं कर लेते हैं । विरोध और स्वयं के विचारों को सामने रखने लगते हैं । ऐसे निर्णय किशोर अवस्था के उत्तरायण में प्रवेश करते समय परिलक्षित होते हैं । मनमाफिक चाहतों के कारण विरोध के साथ अपनी बातों को कहते हैं । जिसमें समझ की कमी होती है । जिंद ज्यादा ।
यदि समय अनुसार स्वयं की समझ और जिंद में बदलाव नहीं करते हैं तो पूरी जिंदगी उसके सोचने के तरीके की वजह से चरित्र का निधार्रण कर दिए जाते हैं । समाज या फिर संबंधित व्यक्ति के सम्पर्क में आए व्यक्तियों द्वारा । उसकी पहचान दे दी जाती है ।
किशोरावस्था के पूर्व की समझ
और फैसले ज्यादातर विचार के बाद नहीं आते हैं । कई ऐसे काम करते हैं जिसके बारे में उसे खुद ही पता नहीं होते हैं । उसके आसपास की दुनिया में जो ज़्यादा देखते हैं । उसी को अपनाते हैं । भावनाओं की प्रबलता होती है । जिस दिन उसकी समझ में आते हैं उस दिन उसे स्वयं के द्वारा किए अपने कुछ कार्यों से लज्जित महसूस होते हैं । जब कोई बच्चा अपनी उपस्थिति एक व्यक्ति के रूप में करने लगते हैं तब समाज उसे उचित स्थान देने लगते हैं । अन्यथा उसे नजरअंदाज करने लगते हैं ।
हर निर्णय उसकी समझ को प्रदर्शित करते हैं ।
जिसमें जितना खरा उतरता है उतना ही महत्व रहता है । किसी अन्य के लिए ।
चाहे उसके निर्णय किसी अन्य के विचारों की सहमति में ही क्यों न हो । उसे उसी का निर्णय और समझ माना जाता है । ज्यादातर ऐसे निर्णय माता-पिता द्वारा लिया जाता है । अपने बच्चों के लिए । जिनमें निर्णय लेने की क्षमता नहीं होती है । इससे अच्छा है कि मात-पिता को चाहिए अपने बच्चों को उचित अवसर प्रदान करते हुए उसकी समझ विकसित करने का मौका दें । न कि उसको जीवन भर सुविधा प्रदान करें । जितना सामना करेगा उतना ही उसे निर्णय लेने का मौका मिलेगा । अपने बच्चों के हर निर्णय उन्हीं के द्वारा लेने का अवसर देने से ही उसमें परिपक्वता आएगी ।
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