ग्रहणशीलता हम और आप article on receptivity.

ग्रहणशीलता व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वह किस चीज से प्रभावित होते हैं article on receptivity. प्रभावित होने वाले की स्वीकृति अंतर्मन से बाह्य मन तक रसास्वादन करते हैं । जिस पर ठहरना या उचटना उसके अहसास पर निर्भर करता है । जो अच्छे या फिर बुरे हो सकते हैं । जिसके आधार पर पसंद/नापसंद का निर्माण होता है ।समझ की स्वीकृति मिलने के बाद नजरिए का निर्माण हो जाता है । जिसे जल्दी बदला नहीं जा सकता है । एक निर्माण जब विचारों का हो जाता है जो तत्काल निर्णय करता है । 

article on receptivity.

ये निर्णय ही है जो किसी के चरित्र,,सोच,,समझ का निर्धारण करते हैं । समाज जिससे आंकते हैं । उसी आधार पर लोग बातचीत करते हैं । व्यक्ति की पहचान भी बनाते हैं ।

क्योंकि जो इंसान जितना किसी चीजों या भावों को ग्रहण कर चुके हैं । उसकी अभिव्यक्ति करते हैं । परस्पर संवाद स्थापित करते हैं । बार-बार दोहराते हैं । समझ ही है जो लोगों को एक सीमा में बांध देते हैं । जिसमें मुर्खता भी हो सकती है या फिर विद्वत्ता भी ।   

व्यक्ति ग्रहण करने लिए अपने आसपास देखते हैं । आंतरिक भाव,, आंतरिक ध्वनियों को महसूस करते हैं । जिसके औचित्य उसके सुखद या दुखद अनुभव पर निर्भर करता है । जिस आधार पर सही/गलत, उचित/अनुचित का निर्णय करता है । 

अच्छी समझ के लिए जरूरी है । हमारे अच्छे निर्णय । अच्छी पसंद जो हमारे दिल और दिमाग को बढ़ोत्तरी में मदद करें । लेकिन दुर्भाग्य है । आज हमारे पास हमारे दुषित मन को भी समर्थन देने के लिए भी साधन है । तो अच्छे के लिए भी । हमारे विचार विकसित हो या न हो । लेकिन उसका समर्थन के लिए कई सोशल मीडिया है । जहॉं से हम अपने विचारों पे टिके रह सकते हैं । जहॉं हम गलत/सही के लिए नहीं लिखते/पढ़ते हैं । केवल अपनी बातों सही साबित करने और समर्थन प्राप्त करने के लिए । उपयोग करते हैं । जहॉं नफरती बातें अधिक मिलेंगी । विचारों का निर्माण नाममात्र होकर लोग अपनी बातों को मनवाने में ज्यादा विश्वास करते हैं । खुद को साबित करने के लिए झूठ परोसा जाता है ।

ग्रहणशीलता हम और आप 

मोबाइल का अत्यधिक प्रयोग कल्पना शक्ति को क्षीण कर देते हैं । जहॉं हर चीज़ पका पकाया मिल जाते हैं । कल्पना की आवश्यकता नहीं होती है । 

आज के हर वर्ग इसका इस्तेमाल कर रहे हैं । चाहे युवा हो या फिर बच्चे , सभी के हाथों में दिखेंगे । बहुत कम लोग ही है जो सही इस्तेमाल करते हैं । जिनकी संख्या नगण्य है । ग्रहण करने के लिए विचारों का आगमन इसी दुनिया से आ रहे हैं ।न ही किसी को किसी की जरूरत है । समाज से जुड़ने वाली बात तो दूर की है । घर से जुड़ नहीं पा रहे हैं । मनोरंजन के साधन पहले के समय में चार लोग बैठ कर आपस में बातचीत करते हुए सुख-दुख की बातें करते थे । परस्पर एक-दूसरे की समस्याओं को जानने व समझते थे । आज दूर की बात हो गई है । अब लोगों की जरूरत नहीं फोन की है । विचारों के निर्माण के लिए । 

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-राजकपूर राजपूत 


  

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