रेडियो,, गुजरे जमाने का साथी । article on radio.जो हर पल साथ था । जिसकी कई यादें आज भी मेरी स्मृति में अंकित है ।वैज्ञानिक खोज की बेहतरीन उपलब्धि में से एक है । मनोरंजन और ज्ञान के रूप में जो सबसे पहले इंसानों को मिला । सबसे सस्ता और सबसे छोटा साधन जिसे आसानी से अपने पास में रखा जा सकता है ।
article on radio.
बहुत पहले की बात है । एक समय था । जब सोकर उठते ही रेडियो चालू हो जाते थे । हालांकि हर आकाशवाणी केन्द्रों का अपना प्रसारण का समय होता था । फिर भी मन नहीं मानता था । सुबह का भजन,, फिर रामचरितमानस घर के माहौल को खुशनुमा कर देते थे ।शांति का वातावरण होता था ।समाचार सुनना,, गाने के गीत दिनभर मन को प्रसन्न चित रखते थे ।
कुछ लोग तो इसे अपने साथ सदा रखते थे । चाहे घर हो या फिर खेत । दिनभर पास में रखते थे । रेडियो की आशकी गॉंव भर में चर्चा का विषय बना रहता था ।
मुझे आज भी याद है -"उस समय का "चौपाल " इस कार्यक्रम का जब भी प्रसारण होता था । मेरे गाँव के लोग एक जगह इकट्ठा हो जाते थे । कृषि से संबंधित चर्चा होती थी । नई- नई जानकारियाँ प्राप्त होती थी । साथ में बैठें लोग कई तरह के चर्चे करते थे ।गाँव की बातें होती थी । उस समय हमारे गाँव में रेडियो कम था । जिसके पास था । अमीरी की निशानी समझे जाते थे । गरीब आदमी रेडियो की दिल्लगी में जिसके घर में था । उसके घर में डेरा था । उसका । लेकिन वक्त बदला जैसे जैसे । । मनोरंजन के साधन बढ़ते गए । लोग अपने घरों में सिमटते गए । दूरदर्शन आया । आपसी संबंध करीब आया । लेकिन देखते ही देखते मनोरंजन का साधन बदला, इंसान भी बदल गए ।अब मिलना जुलना कम ही होते हैं ।अब हर हाथ में मोबाइल होते हैं । जिसमें किसी की जरूरत नहीं होती । दिल की तसल्ली अकेले में होती है ।
आपसी संबंध टूट कर बिखर गया है । आदमी सामाजिक से व्यक्तिवादी हो गया है।
---राजकपूर राजपूत
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