auspicious and inauspicious Poetry
शुभ सोचेंगे, शुभ ही होगा
क्या पता है ऐसा ही होगा
एहसान फरामोश का दौर है
मीठी बातों में क्या प्यार ही होगा !!!
मैंने किसी का बुरा न चाहा
ठीक वैसे ही ज़माना मेरा भला न चाहा
आदमी का नंगापन भाते हैं
डर के आगे कोई बोलना न चाहा
आतंक का खौफ है दोस्तों
पहले से ही आवभगत करना चाहा
जब से जाना हम अच्छे हैं
मेरा ख्याल करना न चाहा !!!!
auspicious and inauspicious Poetry
मेरे अच्छे बनने की कोशिश ने
मेरे अस्तित्व पर सवाल खड़े किए हैं
मैं जब भी बोलता हूं
वो बुरा मान जाते हैं
जब बुरे इंसान से भेंट होती है उसकी
वो खुद ही बिना कहे मान जाते हैं !!!!
शराफ़त की इज्जत वहीं तक
तुम कुछ न बोलो वहीं तक
मरने की आस किसे हैं
उसकी अहमियत है
आसमां जमीं तक
उसकी समझ में सब छोटे है
चालाकी है यही तक !!!!
प्रेम करना बहुत सरल है
बस तुझे भुलना पड़ेगा
छोटा-बड़ा का भाव !!!!
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