समानता की भूल

 समानता के भाव ही भेदभाव,राग द्वेष की बुराईयों को मिटा सकते हैं । सबके अस्तित्व समान है इसलिए, केवल समानता । 

अपनी ज़िंदगी सभी जीए । एक दूसरे का आदर हो । कोई धोखे में ना रहे कि वह बड़ा है । मरना तो सबको है ,,,एक दिन ।सबके शरीर में एक जीव स्वरुप आत्मा है । जो अपनी प्रकृति से बधें हैं । वही क्रिया करते हैं जो प्रकृति द्वारा प्रदत्त है । सिर्फ संचालन और क्रिया में भिन्नता है । 

आप बेशक बड़ेपन का एहसास कर ले । जो खुद को सुंदर मानते हैं । वह उसकी गर्वोक्ति हो सकती है । लेकिन उसे वो खुद ही तो नहीं बनाया है । इस तरह कम सुन्दरता,, प्रकृति प्रदत है । इसमें आपकी बस की बात नहीं है । हीनता नहीं आनी चाहिए । 

हालाकि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से बहुत कुछ हेरफेर कर सकते हैं लेकिन इस पर भी आपको इतराने की जरूरत नहीं है । वैज्ञानिकों को भी प्रकृति में उपस्थिति तत्वों की ही पहचान करनी पड़ती है । जिसे उपयोगी या घातक बनाया जाता है ।जिसकी सीमा है । वक्त वक्त में अपडेट करना पड़ता है । प्रकृति में हर चीज़ का गुण दोष है । केवल मात्रा में अंतर है । अपनाए उसे ही जो सबके अनुकूल है ।जैसा मै हूॅं,, वैसे सभी है । 

प्राथमिक आवश्यकताएं लगभग सभी चेतन जीवों में समान है । खाना,,पीना,,प्रजनन क्षमताओं की प्राप्ति जीवों से लेकर पेड़-पौधे भी कर लेते हैं । प्रकृति से प्राप्त निर्देशों के अनुसार । शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्रकृति ही उसे प्रेरित करती है । जैसे कोई बच्चा भूख लगने पर मुॅंह से कोई भी वस्तु को जठराग्नि में पहुंचाने की कोशिश करते हैं । जिसे वो खुद नहीं जानता है । लेकिन प्रकृति ही उसे ऐसा करने के लिए प्रेरित करते हैं । ताकि अपने निश्चित अवस्था तक वो सारी क्रियाओं को कर लें । जो प्रकृति के संचालन में आवश्यक है । इसी तरह से जीव-जंतु,, पेड़-पौधे भी करते हैं । प्रकृति के निर्देशों के अनुसार ।

 शर्त है मनुष्य इन सबसे बेहतर है । जो अपने बौद्धिक क्षमताओं से इसे और बेहतर ढंग से क्रियान्वयन कर लेते हैं । जिससे अन्य जीव-जंतुओं पेड़-पौधों से भिन्न है । श्रेष्ठ है । 

लेकिन मनुष्य की यहीं बौद्धिक क्षमता उसे खुद से भिन्न बनाते हैं । उलझाया देते हैं । मनुष्य को मनुष्य से ।उसकी भावनाएं । खुद को अलग मानने लगते हैं । जो विचारों और नजरियों के कारण इंसान से इंसान भिन्न प्रतीत होते हैं ।  

भूल जाते हैं । वह भी प्रकृति का हिस्सा है । मर जाने के बाद एक किस्सा है । जिसकी अहमियत केवल प्रकृति में उपस्थिति तक रहती है । यहां से जाने के बाद मूल्यहीन



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