Atmanand and You poem
जब भी आप
शांति की तलाश में जाते हैं
ईश्वर के सम्मुख
और बंद आंखों से
खुद के अंदर झांकते हैं
उस समय जरूर
शांति की अनुभूति होगी
खुद के भीतर बातें होंगी
तब लगने लगेगा
सचमुच ईश्वर के सम्मुख
शांति है
क्योंकि आप तकलीफों से हारे हैं
जमाने को छोड़ आए हैं
बहुत पीछे
थक हार कर
जिसकी जरूरत नहीं है
आपको
उस पल
आपके अंतःकरण में
सारी कामनाओं की
निवृत्ति हो जाती है
तब मन को
शांति मिलती है
जब तक
आप इस भावनाओं को
खुद के अंदर
बनाए रखते हैं
तब तक
शांति के साथ है
अपने मूलावस्था में
जिसे आत्मानंद कहते हैं !!!!
Atmanand and You poem
भोगवादी होना
मतलब ईश्वर की कल्पना को
गलत साबित करना
ताकि मुक्ति मिल सके
उन बंधनों से
जिसे ईश्वर के भय से
मानना पड़ता है
उच्च नैतिकता, आदर्श
लोगों के बीच
समता का व्यवहार
गलत करने से पहले भय
सामाजिक बहिष्कृत का क्षय
इसलिए ईश्वर को कोसना शुरू कर दिया
उसके अस्तित्व से दूर कर दिया
ताकि कल्पना में आए तो
परवाह न हो
और आदमी अपनी मर्ज़ी से
जो चाहे जी सके
उसके अंदर की पशुता
जितनी अभिव्यक्ति हो
उसे सिद्ध करने के लिए
कई तर्क हो
अपनी पशुता को
इस तरह दिखाया जाय
ताकि लोग डर जाय !!!
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भोगवादियों को
ब्रह्माण्ड की गतिविधियों से
लेना देना कुछ नहीं है
उसको तो धरती के मनुष्यों से
मतलब साधने की गतिविधियों से है
एक ऐसी दृष्टि
जिसको सबकी भलाई से नहीं है
बल्कि अपनी मलाई से है !!!!
ईश्वर का भय
बहुत कुछ टोकता है
आदमी हर गलतियों से पहले
ईश्वर को देखता है
यही ईश्वर उसे देखता है !!
जो मानता है ईश्वर को
एक सहारा में जीता है
कोई साथ है !!!
-राजकपूर राजपूत
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