इंसान की कमजोरी human weakness article

human weakness article हर इंसान की अलग अलग कमजोरी है । किसी की ईश्वरीय है तो किसी की स्वयं द्वारा निर्मित ।  कोई अपनी चाहत से कमजोर है तो कोई अपनी आदत से है । मगर कमजोर है ।इसमें बड़ी छोटी वाली बात ही नहीं है ।जिसकी है उसके लिए बड़ी है ।क्योंकि इंसान अपनी कमजोरी से लाचार है ।बेबस है । समझते हैं लेकिन निकल नहीं पाते हैं ।

human weakness article

जैसे किसी व्यसन के आदि ।जानते हैं,, नुकसान है लेकिन फिर भी अपनाए है ।ऊपर से तर्क देते हैं ।वो जो कर रहे हैं । उसे भी कोई शौक नहीं है । लेकिन क्या करे ।उसके बिना रह नहीं सकते हैं ।उसकी कुछ मजबूरी है ।उसकी तकलीफ ही इतनी है । किसी को कह नहीं सकते हैं ।जैसे खुद की बुराई का समर्थन देते हैं ।क्योंकि कहीं न कहीं उसको अच्छा लगता है । शायद वो जानते हैं भीतर ही भीतर उसके स्वाद को , जिसकी जरूरत उसे कितनी है । अपनी तकलीफों को ऐसी बड़ी  कर लेते हैं कि उसको समझाने वाले भी उसकी हालातों पर तरस खाते हैं ।इसलिए समझा नहीं पाते हैं और वो छोड़ नहीं पाते हैं ।  

जिसकी कोई कमजोरी बनती है । 

उसकी दिल्लगी गहरी होती है ।कमजोरी में मानसिक भय,डर होता है । तसल्ली तभी होती है । जब वे सोचते हैं और ख्याल करते हैं । न सोचे तो अधुरा सा,, कुछ छूटा सा महसूस करते हैं ।
कमजोरी कोई भी हो,,चाहे चाहत की हो या आदत की । है । प्रकृति की हो या इंसानों द्वारा निर्मित । बहुत कठिन है उससे पार पाना । एक अवसाद सा फंसा रहता है । जीवन भर । ऐसे लोग अक्सर समझाने वालो को उपेक्षित करने लगते हैं । या तो बेवकूफ समझेंगे या नासमझ ।अपने ख्यालों से नहीं निकालेंगे  अपनी कमजोरियों को । अपने ख्यालों  में रखेंगे । या तो चोरी चोरी प्राप्ति की कोशिश करेंगे ।या घिरे रहेंगे । उसी में ।

जीवन भर । 

यदि निकलना चाहते हैं तो उसको अपनी कमजोरी की बुराई का अहसास होना जरूरी है । जो आपके भीतर का समर्थन है । दिल्लगी है । खुद ही नकारना जरुरी है । कमजोरी के ख्यालों को भूलना होगा । दिल से ,,, और यह मानना होगा कि जिंदगी किसी एक पहलु से नहीं चलती है । जीने के लिए बहुत कुछ चाहिए । बहुत से रास्ते हैं । किसी एक रास्ते में उलझना ठीक नहीं है । 
सकारात्मक विचारों को आत्मविश्वास के साथ स्वीकार करना । खुद की सोच बेहतर है दूसरो के नजरिए को मानने से ।
---राजकपूर राजपूत''राज''
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