घर का मुखिया बनना इतना आसान नहीं है । Ghar ka mukhya उसे अपना सबकुछ त्यागना पड़ता है । अपनी खुशियां छोड़ के घर के सदस्यों के बारे में सोचना पड़ता है । उसकी खुशियों में जीना पड़ता है । इस जिम्मेदारी को हर कोई निभा नहीं सकते हैं । इसलिए कहा जा सकता है कि मुखिया बनना इतना आसान नहीं है ।अधिकार के बारे में नहीं जानता है मुखिया,, उसके हिस्से सिर्फ कर्तव्य है । इस पर पढ़िए कविता 👇👇👇
Ghar ka mukhya
घर का मुखिया होना
खुद के अंदर दुनिया होना
दूसरो की खुशी में खुशी
हर ग़म को चुपचाप ढोना
खुद को मिले दर्द मगर
कभी किसी से न कहना
खुद के हिस्से दर्द बहुत है
अपनो का दर्द सदा लेते रहना
देना ही सीखा है जिसने सदा
अपनो को खुशी मिले यही जाना
जिससे मिले अपनो को खुशी
वो काम सदा करते रहना !!
मुखिया घर का
घर का मुखिया का थका हुआ चेहरा
अंदाज लगा लेता है
अपनों का दर्द, पीड़ा
और ले आता है वहीं भाव
जो घर के अंदर है
जब तक चेहरे पर खुशियां नहीं आती
जब खुशियां घर में नहीं आती !!!
मुखिया की आंखें
घर की मुखिया की आंखें
दूर भी जाती है
पास भी रहती है
घर की आंखों की रंगत देख
परेशान भी होती है
खुशी भी होती है
हर आहट पर जागती हुई
न जाने कैसी सोती है
कैसी जागती है !!!!
घर का मुखिया
नाम दुखिया
मांगे न कुछ अपने लिए
दें तो सुखिया
सबकी हंसी उनकी हंसी
सुकून है जिसकी अखियां
घर का मुखिया !!!!
0 टिप्पणियाँ