पुरुष और स्त्री Najariya stree aur purush ka

एक ही बात, चीजों, सिद्धांतों पर दोहरा मापदंड है ।Najariya stree aur purush ka  एक ही आदमी दोहरे चरित्र से जीते हैं । नजरिया अपनाते हैं । जिसमें स्थायित्व नहीं है । यही दोगलापन थकावट पैदा करती है । सार्वभौमिक सत्यता की कमी, वर्ग विशेष की छूट, वर्ग विशेष का समर्थन । तथाकथित बुद्धिजीवियों का पाखंड है । जिसे समझना बहुत ज़रूरी है । पढ़िए इस पर कविता 👇👇

Najariya stree aur purush ka 

उन्हें दुःख होता था
चलते , उठते , बैठते समय
पुरुष के कनखियों से
वो अपने बदन को
बार बार 
ढंकने की कोशिश में
दुपट्टा को सम्हालती थी
चेहरे पे अजीब-सी
घबराहट लिए हुए
अपनी अस्मिता को
समेटने में
बार- बार 
कोशिश कर रही थी
लेकिन एक पुरुष की निगाह
दूषित मन से
उसकी अस्मिता को
निहारने का दुस्साहस
कर रहा था
वासना से ग्रसित
अट्टहास भर रहा था
जिसे वो बखूबी
समझ रही थी
क्योंकि
उसकी रोज की 
यही जिंदगी थी
आते जाते !!


एक लड़की अपने कपड़ों को

इस तरह पहनी है
ताकि उसके यौन अंगों को
उभर मिले
और उसकी पहचान मिले
कितने आधुनिक है
जो पर्दा नहीं करता है
अपनी अस्मिता का डर नहीं करती
यह जानते हुए
सब उसके जिस्म को
मानसिक स्पर्श कर सकते हैं
एक मजा के तौर पर
लेकिन उसे मतलब नहीं है
पुरूष सम्हालें अपना नजरिया
यही बात उसे आधुनिक बनाती है
ऐसी मानती है
जो चाहे मानसिक स्पर्श से 
मज़ा लें
उसे कोई फर्क नहीं पड़ता है!!!


एक विद्वान ऐसा भी है

जो बिकनी पहनने का समर्थन करता है
पुरजोर
लेकिन वही कुछ वर्ग समूह का समर्थन करता
पर्दा प्रथा का
पुरजोर 
स्थाई नहीं है नजरिया
किसी एजेंडे में स्थापित सा !!!!

स्त्री पर सहानुभूतिपूर्वक
कविताएं लिखी गई
जैसे सदा से शोषित
पुरूषों द्वारा
और पुरुष से
अलग करने की कोशिश की
स्त्री को
प्रेरित किया गया
पुरूष से विद्रोह करने के लिए
जबकि स्त्री और पुरुष
एक दूसरे के लिए बने हैं !!!!!
इन्हें भी पढ़ें 👉 स्त्री और पुरुष लेख 

---राजकपूर राजपूत''राज''







Reactions

एक टिप्पणी भेजें

2 टिप्पणियाँ