कही यादों में ना रह जाए_गौरैया

कांशीराम , गौरैया की एक जोड़ी को एकटक निहार रहा था और बचपन की यादों को सोच-सोच के भाव विभोर हो रहा था ।। अद्भुत अपनापन महसूस कर रहे थे। बीते हुए दिनों में कैसे गौरैया उसके जीवन का हिस्सा था।जब खेतों में छिटकवां विधि से उसके पिता जी धान की बोवाई करते थे।तब धान के बीज खेतों के ऊपर में ही पड़े रह जाते थे। जिसे गौरैया पक्षियों के झूंड सीधे खेतों में उतर कर एक-एक दाना चुग जाते थे।जिसकी रखवाली के लिए पिता जी एक थाली या अन्य किसी चीज को जोर- जोर से पिटवाते थे।जिसकी आवाजें सुन चिड़िया फुर्र से उड़ जाते थे।उस दिन दुःख लगता था कि ये चिड़िया हमारे घरों के आसपास ही क्यों रहते हैं। और रहते हैं तो ये धान के ही बीजों को क्यों खाते हैं।
कांशी जैसे ही पक्षियों के झूंड को खेतों की ओर आते देखते जोर- जोर से थाली को पिटते और भगाने के लिए कई तरह की आवाजें निकालते। लेकिन दिन भर के रखवाली भी कठिन काम था। इसलिए वे अपने दोस्तों को भी खेतों में ले जाते और वही खेलते- कुदते थे।जब धान के बीज अंकुरित हो जाते थे।तब जाके खेतों की रखवाली से छुट्टी मिलती थी।
कांशी को जब भी स्कूल की छुट्टी मिल जाते थे तो वह गौरैया पक्षी को अपने आंगन में दाना डाल के पकड़ लेते थे। फिर क्या था,उसको रंगते, फिर छोड़ देते थे। अपने दोस्तों को बताते कि यदि तुम्हारे घरों में लाल रंग के गौरैया आए तो समझ लेना, उसे मैंने ही पकड़ा था। वो मेरी चिड़िया है।उसे कोई परेशान ना करना।सबको समझाते थे।
सोचते-सोचते कांशीराम के हृदय प्रफुल्लित हो रहे थे।न जाने उस समय कैसे जीवन का हिस्सा था..!उस नादानी के दिनों में , दोस्तों के कमी को पूरा कर जाते थे। लेकिन कुछ ही पल में डर भी गए।कही ये चिड़िया हमें छोड़ के चला ना जाएं। आज ये चिड़िया के अस्तित्व ही खतरे में है। और हम लोग अपने विकास तो कर लिए लेकिन ऐसे जीवों के लिए खतरा बन गए हैं। अजीब सी दौड़ की वजह से कभी अपने लिए फुर्सत नहीं मिलती है। जिंदगी की दौड़ में न जाने क्या -क्या छूट गए है।आज बहुत दिनों के बाद गौरैया को आंगन में फुदकते देखा तो सुने जीवन में एक संगीत की अनुभूति हो रही थी।
कांशीराम अपने आंगन में धान के बीजों को सुखा रहे थे। गौरैया पक्षी के एक जोड़ी धान के दाने को चुग रहे थे। जिसे कांशीराम बड़े ध्यान से देख रहा था। उसके चीं चीं मानों घर -आंगन की ख़ामोशी और उदासियों को तोड़ रही थी।
कांशीराम सोचने लगा कि ये पक्षी अब कम ही दिखाई देते हैं।इसको बचाने के लिए सरकार कोई पहल क्यों नहीं करते हैं।
कांशीराम सोच ही रहे थे तभी उसकी पत्नी कमला आ गई।अपने पति को इस तरह से सोचते हुए देख समझने में देर नहीं लगी।
उन्होंने कहा-''क्या देख रहे हो''
''कुछ नहीं,बस इस गौरैये को देख रहा हूॅ॑ । कैसे हम लोगों के जीवन से दूर हो रहा है।आज के इंसान अपने लिए तो कई सुविधाएं इक्ट्ठा कर लिए हैं लेकिन कई बेजुबान जीव- जंतुओं के बारे में सोचना बंद कर दिया है। सिर्फ़ अपना ही विकास कर रहा है।इन सब के लिए फुर्सत ही नहीं निकालते हैं।"
'ये सब छोड़ो। यदि आप चाहते है कि गौरैया की जोड़ी हमारे जीवन में शामिल रहे तो हम दोनों को ही कुछ करना हैं। आपको मैंने नहीं बताई थी कि कुछ दिनों से मैं ही इन दोनों गौरैया के लिए पानी और दाना घर के छत के ऊपर रखती थी। जिसके कारण गौरैया हमारे छतों पर आती रही।'
कांशीराम इसके बारे अभी तक सोचा नहीं था।उसे अपनी पत्नी की बातें अच्छी लगी। और खुद से कुछ शर्मीन्दगी महसूस कर रहे थे।वो केवल सोचते रहे और उसकी पत्नी एक कदम आगे रही।।
अब कमला अपने घर में रोज की तरह एक जगह पानी और कुछ दाना रख देती थी। दाना और पानी मिलने के कारण गौरैया काशी के घर में ही अपना घोंसला बना लिया। अब दोनों पति-पत्नी गौरैये की रोज खबर रखने लगे। उसके सुने घर में कुछ दिनों के बाद गौरैया के बच्चों की चीं चीं चीं से गूंजने लगी।काशी और कमला दोनों आज बहुत खुश थे। उन्होंने अपने जीवन में फिर से गौरैया को शामिल कर लिया था। उसके जीवन के सुने पल को गौरैया अपनी चीं चीं ची से गुंजायमान कर दिया था।
___ राजकपूर राजपूत'राज'
कहीं यादों में न रह जाए - गौरैया


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