आखरी छाॅ॑व

aakhari-chanv- बीस- तीस एकड़ का मैदान था। कुछ दूर- दूर में बबूल के पेड़ उग गए थे। कुछ बबूल पूरी तरह से पेड़ हो गए थे और कुछ अभी काफी छोटे पौधों थे।जिसे बकरियों के बार-बार चर देने से कांटे अधिक आ गए थे।शायद प्रकृति ही इस तरह से बने हैं कि कोई भी जीव -जंतु या पेड़ अपने अस्तित्व को बचाने में स्वयं ही मानों सक्षम हो। काॅॅ॑टों की वजह से कोई भी उसे आसानी से तोड़ नहीं सकता था। फिर भी मनुष्य ही ऐसी प्राणी है जो अपने बौद्धिक क्षमता से कभी भी अपने लालच में आकर छेड़छाड़ कर जाते हैं।

aakhari-chanv- गांव के मुखिया का मानना था कि ये बबूल का पेड़ व्यर्थ ही उग आए हैं।पूरा मैदान देखो तो काॅ॑टों से भरा है।इधर -उधर चलने में बहुत डर लगता है।कही पैरों में कोई काॅ॑टा ना चुभ जाएं। इसलिए उसने गांव में बैठक बुलाई और अपनी बात सभी गांव वालों के सामने रखी कि वह इस बबूल की जगह कुछ छायादार पेड़ लगावाएंगे।जो दिखेगा भी अच्छा और जिसमें छाॅ॑व भी अधिक होगी। गांव में उसी का दबदबा चलता था। उसके बातों को सभी लोग मान गए।सिवाय गोकुल के। 
गोकुल पेड़- पौधों से बहुत प्रेम करता था। उसने तालाब के मेड़ों पर बरगद और पीपल के कई पेड़-पौधे लगाए हैं। जिसका देख-रेख वो स्वयं करता था। उसके पेड़ों को नुक्सान पहुंचाने की हिम्मत किसी में नहीं थी।
वह भी मुखिया के बातों से सहमत थे लेकिन उसका कहना यही था कि कोई पेड़ तब काटे जब दूसरा पेड़ तैयार हो जाऍ॑॑। कुछ मुखिया के चापलूसी करने वाले लोगों को यह बात अच्छी नहीं लगी। वे लोग गोकुल से बहस करने लगे। गोकुल भी अपनी बातों पे अडें रहे।अंत में मुखिया ही सभी लोगों को शांत करवाया और यह निर्णय लिया गया कि तत्काल ही नये पौधे रोपित किया जाएगा।

फिर भी गोकुल उदास था। क्योंकि वह जानता था कि कोई भी पेड़ इतने आसानी से तैयार नहीं होते हैं। जैसे ये सब लोग कह रहे हैं। अभी तो गर्मी का महीना है। पौधों का देखभाल कौन करेगा..?उसे इसी बात की चिंता थी।

कुछ दिनों के बाद पेड़ों को काटना शुरू कर दिया गया।सारे बड़े पेड़ों को पहले काटना शुरू किया।उसके बाद छोटे पौधों को। मुखिया के सोच को गोकुल समझ नहीं पाया था।वे सारे लकड़ियों को ठेकेदार के पास बेचने लगे। ठेकेदार से पैसा भी मिल रहा था और कुछ फंड के पैसों से छूट पूट काम करवाके पैसा कमा लेंगे।

गांव वालों को गोकुल जब बताते तो किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता था। कोई भी उसके बातों को सुनने के लिए तैयार नहीं थे।सभी अपने कामों में व्यस्त थे। मुखिया कुछ भी करें। किसी को कोई मतलब नहीं था। पेड़- पौधों की चिंता किसी को नहीं थी। अकेले गोकुल बेचारा परेशान था कि ये सब गलत हो रहा हैै। पेड़ों के प्रति लगाव के वजह से कटाई वाली जगह में चलें जाते थे। देखते कि कितने नये पौधे रोपित किया है।देख के उसके हृदय दुःख से भर जाता था। वहाॅ॑ ऐसा कुछ भी नहीं था।केवल बड़े पेड़ों को काटने का काम जोरों से चल रहा था। ठेकेदार और मुखिया दोनों कटे पेड़ों को एक ट्रक में लोड़ करवाते और ले जाते । गोकुल को देखते ही कहने लगे कि इतनी गर्मी में पेड़-पौधों के देख-रेख में बड़ी तकलीफ़ होगी। इसलिए मैंने सोचा है कि बरसात आते ही इस मैदान पर तरह-तरह के पौधे लगवा दूॅ॑गा।जिसकी देखभाल की जिम्मा तुम्हारे हवाले ही होगा।
मुखिया के बातों को सुनकर गोकुल कुछ भी नहीं कहा।चुप ही रहा। क्योंकि वह जान गया था कि यह केवल बेवकुफ बना रहा है।करेगा अपने मन से।पूरी तरह से सियासत करते हैं। गांव वाले उसके इस बात को कभी नहीं समझगे।

 देखते-देखते ही सारे पेड़ लगभग काट दिए गए। मैदान के बीचों-बीच में एक पेड़ छोड़ दिया था।शायद वह बहुत बड़े और घने थे। मजदूर अपना खाना व पानी वही रखते थे।बाकी पेड़ काट दिए गए।

 गर्मी के दिनों में लोग अपने घरों में घुसे रहते हैं।दोपहर हो चुका था। मैदान गांव से एक किलोमीटर दूर है। जिससे पूरा मैदान सांय-सांय कर रहा था।अब मैदान उजाड़ महसूस हो रहा था। कोई हरियाली नहीं।दूर दूर तक पेड़ों के निशान मिट चुके थे।सभी ओर कटे बबूल के ठूंठ ही दिख रहे थे।बस मैदान के बीच मेंं वही बबूल का पेड़ ही बचा था। जहां सभी मजदूर आराम कर रहे थे।शायद इसीलिए उस पेड़ को बचा के रखे हैं। थके हारे होने पर सुस्ताने के काम आते थे।
गोकुल जिसे देखकर बहुत भावुक हो गए,कि ये इंसान भी अजीब है जो पेड़ अभी अपना समझ के छाया दे रहे हैं।उसे कल ये काट देंगे। कितने मतलबी होते हैं..!जो अपने निजी स्वार्थ के चलते  इन वृक्षों की बलि ले लेते हैं।क्या बिगाड़ा है,इन लोगों का..?
गोकुल भावुक मन से अंदर ही अंदर बातें करते हुए,वहाॅ॑ से घर चला आया। मजदूर बैठें ही थे कि मुखिया वहाॅ॑ आ गया। मजदूरों से कहा-''इस पेड़ को भी काट दो। ट्रक में थोड़ा सा कम पड़ रहा है।''
सभी मजदूर अचरज में पड़ गए। और सोचने लगे। एक मजदूर ने कहा--'' पहले क्यों नहीं बताया..! अभी तक काट देते।अब जब धूप तेज हो गया है तब जाके कह रहे हो। सारे पानी फेंक चुके हैं।  कैसे काम होगा..?कही प्यास लगेगी तो..!जाओं आप पहले पानी लाओं ..''।
''कितना समय लग जाएगा।बस दस- पंद्रह मिनटों में पेड़ गिर जाएगा। पहले काटना तो शुरू करों।''मुखिया उन लोगों की बातों को अनसुना कर दिया।उसे जल्दबाजी थी।पानी तो बस्ती में ही मिल पाएगा जो यहाॅ॑ से दूर है।आने जाने के समय में तो काम हो जाएगा,और मुखिया उसी पेड़ के नीचे खड़ा हो गया।दो मजदूरों को कामकरने का मन नहीं था।वे दोनों बहाना बना कर घर चले आए। 
मुखिया ने कहा-''आप लोग कर दो।"रूकें तीनों मजदूरों ने उसकी बात मान ली और काटना शुरू कर दिया। 
मुखिया को समझाया कि आप पेड़ के नीचे से चलें जाए। लेकिन बाहर धूप तेज था। जाएं तो जाएं कहाॅ॑।

"चलिए..!आप लोग काटिए। पेड़ गिरने से पहले मैं हट जाऊंगा।"

जल्दी जाना सबको है। इसलिए जल्दी- जल्दी से काम करने लगे।जब पेड़ गिरने वाला था तो फिर मुखिया को बोले।अब आप हट जाइए।
"अभी तो कुछ देर है ,और गिरेगा तो उधर ही गिरेगा।"
मजदूरों ने अब बार- बार कहना उचित नहीं समझा। चुपचाप काम करने लगे।छाॅ॑व के बाहर पड़ रहे धूप की वजह से मुखिया पेड़ के नीचे खड़े-खड़े देख रहा था।
कुछ देर बाद पेड़ से गिरने की आवाज़ चर्र की आई। मुखिया को लगा कि पेड़ उसी की ओर आ रहा है। अचानक हड़बड़ा के दौड़ लगाई।जिसके कारण पैर फंस गया और मुंह के बल जमीन पर गिर पड़े। मजदूर लोग जिसे देख के बहुत हॅ॑सने लगे। और पेड़ काटते रहे। पेड़ गिर गया। लेकिन मुखिया अभी तक जमीन पर पड़े कराह रहें थे। जिस ओर काम बंद होने के बाद मजदूरों का ध्यान गया।जाकर देखा तो दंग रह गए।पलटा के देखा तो एक ने कहा-"हम समझ रहे थे कि मुखिया ऐसे ही गिरे हैं। खुद उठ जाएगा। लेकिन ये तो बेहोश होने वाला है।"
दूसरे ने कहा-"शायद! ये किलो भर का पत्थर सिर में लगा है। जिससे मुखिया झल्ला गया होगा।"
तीसरे ने कहा-"मुंह के बल ही तो गिरा था। सभी ने तो देखे हैं। तभी तो नाक और मुंह से खून निकल रहा है। चलों!उठाओं।"

aakhari-chanvजो सभी ने खड़ा होकर,सब ओर नज़र दौड़ाई।कही छांव मिल जाए। लेकिन दूर- दूर छाॅ॑व नहीं दिखे। कटवाएं तो स्वयं मुखिया ही था ।मुखिया को तीनों मजदूर पकड़े और उठा के छांव ढुढ़ने लगे। बड़े पेड़ सभी कट चुके थे।छोटे पौधों की छाॅ॑व नहीं बन रही थी। सूर्य महराज सीधे सिर पर था। करें तो करें क्या...? कुछ समझ नहीं आ रहा था।पानी के छीटें मारते वह भी नहीं था। 
मुखिया हट्टे -कट्टे जवान था और मजदूर दिन भर के थके हुए थे।उसे कितने समय तक उठाएं इधर- उधर घुमते रहते।तभी मुखिया कुछ बुदबुदाएं। आवाज़ समझ नहीं आ रहे थे।शायद पानी मांग रहा था।वही ज़मीन पर लिटा दिया और उसके बातों को सुनने की कोशिश करने लगे। एक ने कहा-"कही मर- वर न जाए।"
मुखिया कुछ होश में था। चेहरे पर कुछ नाराजगी साफ़ झलकी थी और दर्द से ऑ॑खों में ऑ॑सू ।
दूसरे ने कहा-"ऐसा करों ट्रक वाले को दौड़ के बुला लाओ। उसके पास जरुर पानी-वानी मिल जाएगा।"ट्रक वाले की ख़बर किसी को नहीं रहा।१००-१५०मीटर जो दूर  था। घबराहट में किसी की सुध ही नहीं रहा।
ट्रक वाले के पास पानी मिल गया। जैसे- तैसे करके ट्रक के पास लाया गया।उसे ट्रक में ही बिठाकर अस्पताल में भर्ती करवाया गया।
कुछ दिनों बाद मुखिया फिर से भले -चंगे हो गए। ठीक होते ही उसने गोकुल के लिए बुलावा भेजा। गोकुल को देख के मुखिया कुछ शर्मिंदा हुए। फिर उसने कहा- "तुम सही थे गोकुल, मैं गलत था। अब जैसा चाहते हो तुम वैसा ही होगा।"
मुखिया के चेहरे पर पछतावा साफ दिखाई दे रही थी । पेड़ों के महत्व समझ गया था। गोकुल ने सहर्ष स्वीकार कर लिया और अकेले ही दूसरे दिन से फिर मैदान को हरियाली से संजाने लगे।।

___ राजकपूर राजपूत''राज''

 
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