अपने-अपने इरादें own intention story

गांव के तालाब में बहुत गंदगी फैल गई थी। own intention story  पन्नी ,कपड़े और न जाने कितने लोगों के चुता- चप्पल पानी में तैर रहे थे। जगह-जगह जलीय घांस उग आएं थे। जिससे घाट का पता नहीं चल पा रहा था। फिर भी जैसे- तैसे लोग नहाते थे। मानों किसी को बुरा भी नहीं लगता था। आजकल गांव बस्ती के कामों मेंं किसी को कोई मतलब नहीं। ये सब किसी एक का काम नहीं है।सबका है। आखिर कौन करेगा..? फिर भी गनपत ही ऐसे व्यक्ति थे जो जब भी नहाने जाते थे तो घाट के आसपास पड़े दातून के टुकड़े, साबुन,निरमा आदि के पन्नी को बिन के जला देता था।    गांव के तालाब में बहुत गंदगी फैल गई थी। 

own intention story  

पन्नी ,कपड़े और न जाने कितने लोगों के चुता- चप्पल पानी में तैर रहे थे।   सभी लोग उसके इस काम को सराहते थे। वह कई बार सरपंच को कह चुका था। लेकिन उसे किसी बात की चिंता नहीं थी। गनपत मन ही मन सोचता कि इसका हल किस तरह से निकाला जाएं।

जब गांव में बैठक हुई तो गनपत ने इस बात को सबके सामने रखी और सभी से एक दिन के लिए श्रम दान करने की प्रार्थना किया। कुछ लोगों ने उदासी दिखाईं तो कुछ लोगों ने बात मान ली। उस दिन उसे महसूस हुआ कि समय बदल गया है और लोगों के समाजिक कार्यों के प्रति रूचि नहीं। फ़िर इस बात से संतोष हुआ कि कुछ लोग तो समझें।

अगले सुबह फावड़ा-कुदाल और झोवा लेकर तीस-चालीस लोग ही तालाब में आएं।जिसे देखकर गनपतका मन में थोड़ा निराशा जरुर हुआ। इतने बड़े बस्ती में इतने लोग..! सिर्फ़ कहने भर के..! फिर भी वह खुश था। चलों कम से कम कुछ लोग तो आएं। इन्हीं लोगों के भरोसे कुछ तो काम होगा।

सभी तालाब के किनारे पड़े झिल्ली,चूता- चप्पल उठाने लगे। बीस_बाईस साल के कुछ लड़के भी आएं थे।जो अपने हाथों से तो नहीं उठा रहे थे।वो तो लकड़ी के सहारे से उठा रहे थे।शायद शौक से काम करने आए थे। या फिर उसके माॅ॑-बाप अपने बदले भेजे थे। कुछ देर काम किया और तालाब के मेढ़ पर चढ़ कर मोबाइल देखने लगे। गप्पे हांकते। बातें करते।बस काम नहीं करते ।
वही पर काम कर रहे बुजुर्ग आत्मा राम ने उन लड़कों से कहा --"बेटा ! नदी -तालाब का काम पूण्य का होता है। थोड़ा बहुत काम कर दो"।
इतना सुनते ही पीछे से पूरे कटे और सामने से बालों को लाल रंग लगवाएं लड़के ने कहा--"तुझे भी नहीं करना है तो मत करो! फ़ालतू के उपदेश मत झाड़। गांव भर के लोग नहाते हैं। आएं कितने हैं।हम आ गए वो भी बहुत है।"
इतना कह के ज़ोर से हॅ॑स दिए। आत्माराम ने सोचा कि ये लोग मुॅ॑हपट है। इसे समझाना बेकार है और वे चुप -चाप काम करने लगे।
आत्माराम का मन टूटने लगा और सोचने लगा कि हमारा भी क्या ज़माना था।सब नदी-तालाब को गंगा मईया कहके पूकारते थे। लेकिन आज नहीं। कैसा जमाना आ गया है। वो सोचते- सोचते काम करने लगे।
कुछ दूर में काम कर रहे, गनपत यह सब देख रहा था। वो भी निराश हुआ।उपर से कुछ सयाने लोग भी आपस में बात कर रहे थे कि देखो इतने बड़े गांव में बस हम ही लोग आएं हैं।शायद वो लोग समझदार है और हम लोग बेवकुफ।जो नहीं आएं हैं।वे लोग कह रहे थे जरुर फिर भी कुछ काम कर रहे थे।

आत्माराम कुछ देर काम करके तालाब से बाहर निकल गए। और गनपत को भी बोला- "अब कुछ आराम कर लो। सभी लोग तो आराम कर रहे हैं। "लेकिन गनपत था कि कमर भर पानी में घुस कर कचरा निकाल रहे थे।
साठ साल के हो गए थे। इसके बाद भी यदि काम करना शुरू कर दिया तो वह पत्थर से भी पानी निकाल दें।वह बहुत संतोषी आदमी था।काम करते समय चेहरे पर चरा सा भी शिकन नहीं लाता था। इतने लगन से काम कर रहा था मानो ये सब उसी का है।जिसे देख आत्माराम फिर से कहा--"देखो सब बैठें हैं। तालाब केवल तुम्हारा बस नहीं है,पूरे गांव का हैं।जो जवान है वो घुम रहे हैं।"

गनपत तालाब के किनारे नज़र दौड़ाई। लड़के उसकी ओर आ रहे थे। केवल कुछ बुजुर्ग लोग ही काम कर रहे थे।उन्ही लोगों के मेहनत की वजह से लगभग तालाब आज साफ हो गया था। तालाब के किनारों पर कचरे का ढेर लग गया था।बस थोड़ा सा और बचा था। जिसे गनपत पूरा कर रहा था और कुछ देर काम करने के बाद आत्माराम के पास किनारे पर आ गया और कहने लगा--"हमने गरीबी देखी है। मेहनत करते हुए सारी उम्र गुजर गई लेकिन अपनी गरीबी नहीं मिटा सके।मेहनत करना आदत सी है।जब तक हिम्मत है, कामचोरी नहीं करेंगे।जिसकी आदत ही नहीं,काम करने का।वह सभी जगहों पर कामचोरी करते हैं।क्या घर..?क्या बाहर..?वे लोग वैसे ही उम्र गुजारेंगे। जिसे मेहनत से प्रेम है। वो काम होते देख और उत्साह भरते हैं।थकते नहीं.!आज जितने हमारे उम्र के लोग आएं हैं। सभी मेहनती हैं।जो मानते हैं कि ये हमारे तालाब है।जो यह मानते हैं कि ये तालाब गांव का हैं।वो घर में बैठे हैं या घुम- फिर रहे हैं।""

उसकी बातें सुनकर आत्माराम को तसल्ली हुई। बात तो सही कही। सचमुच बुजुर्ग लोगों के भरोसे पर ही ये तालाब आज साफ हो पाया है। तालाब के चारों ओर कुंडे का ढेर लग गए थे और तालाब पूरी तरह से स्वच्छ, सुंदर दिख रहा था।
कुछ देर बाद जो लड़के मोबाइल लेके घुम रहे थे। वो तालाब से निकाले कचरें के पास आ गए। मोबाइल के कैमरा चालू किया और अलग-अलग तरीकों से फोटो खिंचें।
जिसे देखकर किसी बुजुर्ग ने कहा-"आज सिर्फ तुम लोग कैमरों में दिखोगे और हम तालाब में। एक दिन सभी फोटो में दिखेंगे और तालाब में कोई नहीं।""
जिसे सुनकर सभी बुजुर्ग हॅ॑स पड़े।
 लेकिन गनपत के मन उससे भी ज्यादा खुशी थी। उसकी पहल साल भर के लिए सफल हो गया था। वह यह नहीं सोच रहा था कि पूरे गांव के लोग नहीं आएं।वह तो यह सोच रहा था कि पूरे गांव के लिए तालाब साफ हो गया था। आगे के आने वाली पीढ़ी जाने कि वो क्या करेंगे।जब- तक जिंदा है तब- तक तालाबों की साफ-सफाई ऐसे ही करते रहेंगे।मन ही मन उसने अपना संकल्प दोहराया ।
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