ईनाम-प्रेरणादायक कहानी reward - Inspirational Story श्रवण कमजोर लड़का था।वह कक्षा सातवीं में पढ़ते थे।उसका मन पढ़ाई- लिखाई में बिल्कुल भी नहीं लगता था।साथ ही वह गरीब भी था। पढ़ाई-लिखाई के लिए आवश्यक चीजें नहीं खरीद पाते थे।कक्षा में वहअन्य लड़कों की अपेक्षा कम ही बोलते थे। क्योंकि वह शिक्षकों के बातों को समझ नहीं पाते।शिक्षक जब भी शाला में आते तो वह बचने की कोशिश करते थे।कक्षा के बीच में बैठते थे। ताकि शिक्षकों की नजरों से बचा जा सके।शिक्षक जब भी कोई प्रश्न के उत्तर पूछते तो भय से सिर झुका लेते थे। घबरा जाते, कही उसी से न पूछ लें।जहाॅ॑ अज्ञानता हैं वहाॅ॑ भय हैं।सरवन अन्य लड़कों की अपेक्षा शर्मीला था। अपने में खोया सा ।खुद ही मान चुके थे कि वह कमजोर है। भगवान ने उसे ऐसा ही बनाया है।तो क्या कर सकते हैं। क़िस्मत में जो लिखा है।वही तो मिलेगा। अपने घरों में यह बात बड़ों से अक्सर सुना करते थे जिसे वह उचित मानते थे।बस, ऐसे ही भावनाएं उसे पढ़ाई-लिखाई से दूर कर दिया था।
reward - Inspirational Story
त्रैमासिक परीक्षा आने वाला था। गणित के शिक्षक नारायण वर्मा बहुत ही अचछे थे ।वह बच्चों को सदैव पढ़ने- लिखने के लिए प्रेरित करते थे। किसी भी बच्चों में अंतर नहीं करते थे। उसकी नज़रों में कमजोर और होशियार में कोई फर्क नहीं था।सबको समान दृष्टि से देखते थे। पढ़ाते थे।उनका मानना था कि न जाने किस बालक पर मेरी बातों का असर हो जाएं और उसके ज्ञान चक्षु खुल जाएं। शिक्षक दीपक है।जो केवल रास्ता दिखा सकते है।
बच्चों को प्रोत्साहित करने के लिए शर्त रख दी कि जो छात्र-छात्राऐं कक्षा में पहला,दूसरा और तीसरा आऐगा।उसे पेन -कापी मिलेगा। पहले स्थान लिए दो सेट में, दूसरे और तीसरे को एक सुन्दर सा पेन और कापी मिलेगा।सर जी,सबको समझाते हुए कहा -" यह इनाम कोई भी पा सकता है।बस,जिसकी इच्छा है,वह अभी से तैयारी शुरू कर दें। परीक्षा अभी पंद्रह दिनों बाद है।तो सभी लोग कमर कस लो। आपको ज्यादा पढ़ने की जरूरत नहीं है।केवल पांच अध्याय तक पढ़ना है। जहां तक हम लोग पढ़ाएं हैं।"
बच्चों के बीच में बैठें सरवन नारायण सर की बातों को ध्यान से सुन रहा था।सोच रहा था कि काश ये इनाम मुझे मिल जाता तो मेरे पास भी पेन और कापी आ जाते। मेरे पास ढंग के न पेन है और न कापी।तो क्या मुझे भी मिल सकता है..!पर कैसे..? मुझे तो कुछ भी नहीं आता है।सर तो समझा के चलें गए। लेकिन सरवन को अंदर से कोतूहल में डाल गए।
सरवन गणित पुस्तक खोल के देखते और पत्तें पलट के बंद कर देते थे। उसे कुछ भी समझ नहीं आता था। गणित अध्ययन करते समय उसे लगा कि वह पिछली कक्षाओं के बारे में भी कुछ नहीं जानता है।
उसने पढ़ाई शुरू कर दिया।जिस पर दिक्कत आती वो उसे दूसरों से पूछ लेते थे। कभी होशियार लड़कों को परखते कि वह कितने समय तक पढ़ते- लिखते हैं।तब वो सोचते कि वह कम पढ़ते हैं। रात को चार -पांच बजे से पढ़ना शुरू कर देते थे। जहाॅ॑ जाते वहाॅ॑ वो अब पढ़ाई-लिखाई के बारे में ही सोचते थे।अब तो उसे जैसे पेन-कापी किसी दुसरे को ना मिले जाएं की चिंता होने लगी थी।इसी चिंता में वो रात-दिन मेहनत करने लगा। और देखते ही देखते परीक्षा का समय भी आ गया।सभी लोग परीक्षा देने के बाद आपस में बात कर रहे थे कि इनाम अमुक लड़के को मिलेगा। क्योंकि वह बहुत होशियार है।तब चुप हो जाते और भगवान से प्रार्थना करते कि हे! भगवान कम से कम एक इनाम दिला देना।
जब नारायण सर कक्षा में आया तो श्रवण का हृदय की धड़कन तेज हो गई थी। आज क्या होने वाला है भगवान!
सर ने तीसरे स्थान पर आएं बच्चे से इनाम देना शुरू किया।तो श्रवण का मन टूट गया। मुझे मिलता तो तीसरा ही मिल सकता था। लेकिन नहीं..!कक्षा में तालियों की गड़गड़ाहट गूंज उठे थे। इनाम कक्षा के एक लड़के को मिल गया था। नारायण सर, श्रवण को देखते और फिर अनजान सा हो कर बच्चों को पढ़ने का टिप्स देते थे।दूसरे इनाम की जब घोषणा की तब सारी कक्षा में सुगबुगाहट शुरू हो गई थी। आखिर पहला इनाम किसको मिला है। सबकी जिज्ञासा बढ़ गई थी। आखिर कौन है..?जो होशियार है उसे तो नहीं मिला है..!
नारायण सर ने श्रवण को पास बुलाया और पूरे कक्षा को संबोधित करते हुए कहा- "यदि दृढ़ इच्छाशक्ति है तो कुछ भी कर सकते हैं। श्रवण इसका उदाहरण है। जिसने अपनी मेहनत से ये काम कर दिया है।"नारायण सर और श्रवण दोनों गदगद हो गए। श्रवण को मेहनत का फल मिल गया था। और सर को अपने ज्ञान से किसी कमजोर बालक को सही राह दिखाने का । नारायण सर ने श्रवण को समझाते हुए कहा-"इनाम तुम्हारा नहीं है। तुम्हारे इच्छा शक्ति का है।इसे हमेशा बनाएं रखना बेटा..! श्रवण सर के चरण स्पर्श किया। नारायण सर और श्रवण की आंखों में अपने- अपने मेहनत की अद्भुत चमक थी।कक्षा तालियों की गड़गड़ाहट से फिर गूंज उठा था।
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