दर्द है मेरे सीने में और यूॅ॑ ही मुस्कुराते हैं
एक तुम ही नहीं इस सफ़र में और भी है
जो चलते नहीं धूप में वे ही तो डराते हैं
जिसके इरादें हैं मजबूत उसे परवाह कहाॅ
शम्मा गए सीने में तो कहां घबराते हैं
डगमगाए ना कदम तेरे सम्भाल जरा तू
चलना ही पड़ेगा तुझे मंज़िल बुलाते हैं
___ राजकपूर राजपूत'राज'
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