निष्पक्षता के बिना किसी नैतिक मूल्यों को परिभाषित नहीं किया जा सकता है ।
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निष्पक्षता के बिना किसी नैतिक मूल्यों को परिभाषित नहीं किया जा सकता है । नैतिक मूल्य अपने वर्तमान समाज में सबके लिए समान रूप से लागू होता है । यदि व्यक्ति अपने/पराये के भाव दृष्टि में हैं तो उससे निष्पक्षता की मांग बेईमानी है । वो जब भी नैतिकता की बातें करेंगे इंसानों में अंतर करेंगे ।
वर्तमान समाज में निष्पक्षता अपने हितोंनुसार-
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वर्तमान समाज निष्पक्षता को अपने हितों के अनुसार गढ़ते हैं । नैतिक मूल्य आज व्यक्तिगत हितों से बड़ा नहीं है । एक ही नैतिक मूल्यों को दो दृष्टि से देखते हैं । एक अपने लिए और एक दूसरों के लिए । व्यक्तिवादी जीवन शैली में सामाजिक मूल्यों का कोई मायने नहीं है । आजकल सभी व्यक्तिगत लाभ लेने के लिए कई नैतिक मूल्यों को मनचाहे रूप से परिभाषित करते हैं ।
निष्पक्षता की दृष्टि-
निष्पक्षता की दृष्टि रखना कठिन कार्य है । वर्तमान समाज यह मान लेता है कि तथाकथित बुद्धिजीवी, प्रसिद्ध या अन्य कोई प्रभावशाली व्यक्ति द्वारा की गई टिप्पणी को सत्यता के करीब है । उसकी बातों को कभी शक की नजरों से नहीं देखी जाती है । जबकि उस तथाकथित व्यक्ति अपनी सुविधा में बातें करते हैं । उसमें निष्पक्षता का अभाव होता है । बातें कुछ और हो लेकिन इरादे कुछ और है तो आज नहीं तो कल समाज पर बुरा असर पड़ेगा ।
प्रेम पर सवाल उठाना लाजिमी है
क्योंकि लोग अब प्रमाण मांगते हैं
बुद्धिजीवी होने का दावा करते हैं
और भावनाओं के पास कोई प्रमाण नहीं है
इसलिए प्रेम हार गया है
बुद्धिजीवी के तर्कों से !!!
जहां बुद्धि की अधिकता है
वहां प्रेम का अभाव है
तर्कों द्वारा स्थापित बुद्धि
भावनाओं से उपजी प्रेम को दरकिनार करते हैं !!!
प्रस्तुत चरित्र स्थापित बुद्धि का नतीजा है
किसी से संबंध स्थापित करने से पहले
देखा गया नफा/नुकसान का परिणाम है
जो भीतरी भाग से बाह्य रूप में प्रगट होते हैं !!!
बुद्धि का परिणाम है कि भावनाओं का स्थान निम्न स्तर का है । ठीक उल्टा भावनाओं का परिणाम है !!!
बुद्धिजीवी होने का मतलब है कि अपने मतलब कई तरीकों से निकाला जा सकता है । जबकि भावनाओं के पास एक ही रास्ता है । कई भावनाओं में से एक को चुनना । जैसे प्रेम, घृणा,लगाव आदि में । जिसे क़ायम रखना ही सुकून का अहसास है ।
बुद्धि की सटीकता से उपयोग शरीर की इंद्रियों नियंत्रित करने के लिए किया जा सकता है । जैसे आंखों को दुनिया से छुपाना, शारीरिक भाषा को नियंत्रित करके व्यवहार करना मगर भावनाएं इन्हें काबू नहीं कर पाते हैं । जिससे लोग इरा
दे पहचान जाते हैं ।
- राजकपूर राजपूत''राज''
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1 टिप्पणियाँ
सुन्दर
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