बुद्धिजीवी लोग Buddhijivi-log-kavita-hindi-sahitya-jivan

Buddhijivi-log-kavita-hindi-sahitya-jivan साम्प्रदायिकता,, विचार के नाम पर बौद्धिक आतंकवाद की तरह है । किसी महान शख्सियत के विचार में अपना विचार मिला दो । और सामान्य आदमी के विचार को बहला दो । आतंकवादियों की तरह,, बंदूक की नोक पर । चुपके से ।डर से, बहस के भय से, नग्नता फैला दो । ताकि लोग थक जाएं । अपनी गलतियां मान लें भले ही सच्चा रहे । 

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बुद्धिजीवियों से उपजे तर्क

उन मान्यताओं को भी
छिद्द - विद्द कर देना चाहत है
जिनके रहते उन्हें मनमाफिक
जीने की अनुमति नहीं देती है
जो उनके विचार में आए
उसे अपनाएं
वर्ना अपने भीतर की संवेदनाओं को
वे स्वयं सोख लेते हैं
खाने पीने का शौक है तो
निरह जानवरों के
बच्चों का मांस बड़े चाव से खाते हैं
उसकी मां के सामने ही
उसके बछड़े को बड़ी निर्दयतापूर्वक
टूकडों में काट दिया जाता है
तर्क ये है कि इंसान बड़ा है
 जानवरों से
जिसे हक़ है इसे खाने का
बुद्धिजीवी इतने प्रगतिशील है कि
एक बच्चे को उसके अधिकारों को
उसके मां बाप से चुनौतियां देते हैं
उसकी जिंदगी है
मां बाप को हक़ नहीं देते हैं
रिश्तों को काटने वालों को
मुबारकबाद देते हैं
बुद्धिजीवियों का तर्क
बड़ी ही तार्किक है !!!!!

बुद्धिजीवियों का तर्क
बहुत फर्क
अपने पराएं में
आलोचना
नफरतों से
जिसे हम
सुधार की भावनाएं मान लेते हैं !!!

तथाकथित बुद्धिजीवी लोग
बचाव करना सीख गया 
आतंकवादी, राक्षसी प्रवृत्ति के लोगों का
ढाल बन गया है
तलवार की तरह 
जिसके विरोध नहीं करते
मानों समर्थन करते हैं
कई तर्क देकर 
उसे अपनी क्षमताओं पर भरोसा है
तर्क में फर्क दे कर!!!

सिद्धार्थ का वन गमन 

तुम्हें रास नहीं
उसके ज्ञान की बातें से 
तुम्हें कोई आस नहीं
आलोचना करते हो
एक स्त्री को छोड़ गए
रात के अंधेरे में सोती हुई
सिद्धार्थ क्यों गए
तब मैं सोचता हूं
तुम्हारा ये गुस्सा
शायद ! उन समझौते के रिश्तों पर
और अधिक आता होगा
जो मतलब की पूर्ति के बाद
अलग हो जाते हैं 
अगर गुस्सा नहीं आता है
तो ये तुम्हारा दोगलापन है !!!!

तुम राम को रावण से छोटा मानते हो
बताओं तुम राम के बारे में क्या जानते हो
एक रावण अपनी अर्धांगिनी को छोड़
पराई स्त्री को अपहरण कर लाए
ऐसे कर्म की तारीफ 
तुम्हारे चरित्र की अभिव्यक्ति है  !!!

जब तुम ईश्वर को नहीं मानते हो
उससे डरते नहीं हो 
तब तुम स्वयं को मानते हो
जिसकी जिम्मेदारी स्वयं के हित में होता है
न की गैरों के 
तुमने माना है
स्वयं का हित सबसे बड़ा है 
ऐसे लोगों में प्रेम, दया, करूणा की तलाश
बेवकूफ लोग ही करते हैं !!!!

हमें समझा सकते हो, ईश्वर नहीं है
गैरों को समझा नहीं सकते हैं उसका भी ईश्वर नहीं है  !!

तुम्हारी बातों का वैल्यू वहीं खत्म हो जाता है
जहां तुम कट्टरता से जीने वाले के सामने चुप हो जाते हो !!!


समझौते के रिश्तों में
प्रेम नहीं होता है कभी
वासनाओं की पूर्ति हेतु जुड़े हुए हैं
एक दूजे को देख
वासनाओं का जागृत न होना
रिश्तों से अलग होना है !!

उन फिल्मी नायक/नायिकाओं का चरित्र देखो
और उनका अभिनय में चरित्र देखो
संदेश देते हैं प्रेम का
वास्तविक जीवन में उसका चरित्र देखो
फिल्मों का मजा उतर जाएगा
तुम्हारे ही पैसों से कमाकर जाएगा
और तुम्हें अच्छी बातों का सलाह दें जाएगा
उसका धंधा ऐसे ही चलता जाएगा !!!


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-राजकपूर राजपूत 
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