कई कवि मजदूर को मजबूर की नजरों से देखते हैं ,labor-day-on-poetry-meregeet-literature-life
जबकि उनकी भी अपनी दुनियां होती है ! जिस पर कभी दृष्टि नहीं जाती है ! उनकी परेशानियों को से खुद पीड़ित नजर आते हैं ! जबकि उनकी अपनी भी खुशियों की दुनियां होती है !
(१)
मजदूर की व्यथा-
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मुझे वक्त नहीं लगा है
दूसरो का घर बनाने में
पूरी उम्र गुजर जाती है
अपना घर बनाने में
(२)
तेरे शहर में डर लगता है-
मुझे तो तेरे शहर की तनहाई मार डालती
मैं तो ज़िंदा हूँ घर को याद करके
तेरे शहर को बना डाला तपती धूप, ठंड, बरसात में
मिली है ताकत अपनो की खुशियों को याद करके
मैं आता नहीं तेरे शहर मजबूरी ले आई
ठहरा हूँ तेरे शहर में घर को याद करके !!!
मजदूर की खुशियाँ
उनके सपनों में होती है
जिसे घर में छोड़ शहर आते है
उन सपनों के खातिर
ईट , पत्थर , गारा ,
बहुत भाते हैं !!!!
बरसात की पहली बारिश
मजदूरों की हैसियत बताती है
छानी से टिपके पानी
हकीकत बताती है
मरम्मत की जरूरत है शायद
घर के पैसे औकात बताती है !!!
जब भी दिवस आया
मजदूरों के
तथाकथित साहित्यकारों ने
बहुत लिखीं कविताएं
मजदूर प्रताड़ित की तरह
सहानुभूति दी
तू जग का आधार है
जबकि अपने कर्मे से
आंनद लेता था
खुशी मिलती थी उसे
तपती जमीं पर
खुले आसमान पर
ढूंढ लिया था जिंदगी
जो किसी के सहानुभूति से
अपमानित था
वो तथाकथित साहित्यकार था
जिसने तकलीफ देगी
खुशी नहीं
मजदूरों की !!!!
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