story-a-girl-in-hindi वह गूंगी नहीं थी । वह केवल अपनी धुन में रहती थी । अकेले हॅ॑सती थी । अकेली ही खुद से बातें करती थी । जब मन हो जाता वह स्कूल के जमीन पर ही लेट के खेलने लगती थी । शिक्षक बहुत डांट लगाते थे । लेकिन उसे कोई फर्क नहीं पड़ती थी । वह केवल अपने शिक्षक का मूॅ॑ह ताकती रहती थी । शिक्षक पगली कहीं की,,,ना जाने कब सुध आएगी । अक्सर कहते थे ।
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गांवों में भी उसके प्रति यही व्यवहार था । चाहें वह दुकान पर चली जाएं । पगली सरिता ही कहते थे । घर वाले को उसकी चिंता नहीं थी । क्योंकि वह सभी कामों को आसानी से करते थे । बड़े हो जाने पर सब समझदारी आ जाएंगी । केवल भाव-भंगिमाओं से कुछ कमजोर जान पड़ती थी । व्यवहारों और बातचीत मेंं अभिव्यक्ति का तालमेल नहीं था । जिससे बुद्धि से कमजोर जान पड़ती थी ।
सरिता पढ़ने लिखने में सामान्य स्तर के बच्ची थी । माॅ॑ उसके पैदा होते ही चल बसी थी । सौतेली माॅ॑ से उसे दुलार नहीं मिली थी । शायद ! इसी वजह से उसने तन्हाई पसंद थी । उसे अपने दोस्तों से कभी कभार ही खेलते देखा गया था । ना शिक्षक से ना अपनी सहेलियों से उसने खुल के बातें की । वह हमेशा अकेले खेलती रहती थी । किसी से कोई मतलब नहीं और ना ही किसी से शिकायत भी ।
इन सबके बावजूद वे पुस्तकें धीरे धीरे पढ़ लेती थी ।
जब उसकी उम्र पंद्रह बरस की हुई तो माॅ॑-बाप और चाचा-चाची को फ़िक्र होने लगी कि सरिता की जल्दी शादी करनी पड़ेगी । रंग उतनी उजली नहीं थी । फिर भी एक बार जो देख ले,,,सहज ही आकर्षित हो जाए । रंग के अनुरूप चाल ढाल नहीं थी । इसलिए सारे रिश्ते नातों में कह चुके थे कि कोई अच्छे से रिश्ता देखना सरिता के लिए, शादी करेंगे ।
गांव के लोग आज भी उसे गूंगी पगली कहते थे । पिता जब सुन लेते तो खिसयाते थे । अपनी बेटी को कहा करों । अब कोई बच्ची नहीं है मेरी बेटी । किसी का क्या बिगाड़ा है । जो उसे गूंगी कहते हो । निरापद है मेरी लड़की । डर था कि कोई अच्छे रिश्ते को ये गांव बस्ती वाले बहला ना दे । अब पिता के सामने तो नहीं कहते थे लेकिन पीठ पीछे कुछ लोग ज़रुर बोलते थे ।
साल दो साल बीत गए लेकिन कोई ढंग का रिश्ता नहीं आया ।
आखिर एक दिन गांव के ही आदमी ने अपने दूर के रिश्तेदार को सरिता को दिखाने लाएं । लड़के की उम्र कुछ अधिक हो गई थी । उसे भी लड़की नहीं मिल रही थी । कुछ ऐब होगा । माॅ॑-बाप को शंका हो रहा था । लेकिन उतना नहीं । अपनी सरिता में भी तो कमी है । देखने में लड़के में कोई कमी नहीं था । पता नहीं इसे क्यों लड़की नहीं मिल रहा था । खैर, जो भी हो,, लड़के के पास जमीन जायदाद ठीक ठाक था । उन लोगों ने सरिता को पूछने की जरूरत नहीं समझी । उसके मन में क्या है ..?
घरवालों ने सोचा कि बेचारी के हाड़ में हल्दी का रंग चढ़ जाय बस और कुछ नहीं । और सरिता की भावनाओं को कोई समझ नहीं पाएं थे ।
कुछ दिनों के बाद सरिता की शादी हो गई और वो ससुराल आ गई । उसके पति (दिनेश ) में बहुत बुराई थी । वह अय्याशी प्रवृत्ति का आदमी था । दिनभर घुमना फिरना और मस्ती करना बस यही काम था उसका । औरतों को पैर की जूती समझती थी । जितने भी गलत काम वो किए थे सभी बातें सरिता को बताते थे । ऐसा करके उसे खुद पर गर्व महसूस होता था । मानों उसने बहुत बड़ा तीर मार लिया हो । जिससे उसके भावनाएं को ठेस पहुंचती थी ।
सरिता कुछ बोलती तो उसे मजाक-मजाक में खिल्ली उड़ाते थे । कहते- नारी होकर नर से ज़ुबान लड़ती हो ।
ऐसा भी नहीं था कि दिनेश उसके पास आने से कतराते थे । वो तो जिस्म के भूखे थे । जब इच्छा होती,,वहस मिटा के अलग हो जाते । सरिता की भावनाओं की कभी परवाह नहीं करते थे । पति के अवहेलना करने की वजह से घरों में भी उसका सम्मान नहीं था ।
दिनेश अपनी बड़ी भाभी से बहुत झेंपते थे । क्योंकि वह बहुत खुबसूरत थी । जिससे लोग सहज ही आकर्षित हो जाते थे । जिन लोगों का स्वाभाव बाहरी आकर्षण में रहता है वे कभी भी अंतर्मन को देखने की कोशिश नहीं करते हैं ।सब यही मान लेते हैं कि वह समझदार ही होगा । दिनेश भी तो पुर्वाग्रही आदमी था । शारीरिक संरचना के आधार पर लोगों में अंतर कर जाते हैं ।खुबसूरती से ही बुद्धी का आकलन करते थे । जो सुन्दर दिखते हैं बुद्धीमान होते हैं । काले रंग से तो नफ़रत थी । एक ही नज़र से बेवकूफ कह देते थे । लक्ष्मी (उसकी बड़े भाभी) को भी उस समय बहुत संतुष्टी मिलती थी । जब दिनेश सरिता की सबके सामने मज़क उड़ाते थे ।
ऐसी नहीं थी कि वह इन बातों को नहीं समझती थी । सरिता भावनाओं को अच्छी तरह से जानती थी ।
उस घर में सिर्फ उसकी सास-ससुर ही उसको मानते थे । इसके पीछे का कारण उसके चुप रहने की आदत थी । लक्ष्मी तो उल्टा जवाब देती थी ।
कुछ भी काम हो सास- ससुर दिन भर सरिता बेटी ! ये काम कर देना,,,,,, वो काम कर देना ,,, कहते रहते थे ।
वही पर लक्ष्मी खड़ी रहती थी फिर भी उसे कोई कुछ नहीं कहते थे ।ऐसी बातों से खुद को उपेक्षित महसूस कर जाती थी ।
सरिता का दिन ऐसे ही गुज़र रहा था ।एक रात दिनेश उससे कहने लगे -
"क्यों मुझसे तुम खुश हो ना..?" यूॅ॑ ही पूछा था ।
"हाॅ॑ " सरिता ने तुरंत जवाब दिया । जिसे सुन दिनेश संतुष्ट नहीं हुए ।
"ऐसे ही मन रखने के लिए कह रही हो ।"
"नहीं सच कहती हूॅ॑"
"मैं जानता हूॅ॑ । औरतें कभी भी मन की बात खुल के नहीं कहती । जिसके कारण उसे समझने मेंं गलती हो जाती है । इसलिए कहते हैं-नारी की महिमा भगवान भी ना पावे पार"
इतना कह के दिनेश हॅ॑सने लगे । जैसे वो औरतों को अच्छी तरह से समझते हैं । सरिता से रही ना गई ।
"पुरूष अपने भावनाओं को पहले प्राथमिकता देते हैं । किसी भी चीज़ को अपना आधिपत्य में लेने में । जबकि औरत अपने समर्पण में,,त्याग में ।इसी कारण सबको अपना लेती है । प्रेम पाने के लिए । अपना वजूद मिटा देती है । जिस पर पुरुष अधिकार जमाने की कोशिश करते हैं । औरतें दिल से सोचती है और पुरुष दिमाग से ज्यादा सोचने की कोशिश करते हैं । सभी का मैं नहीं जानती,, ये मेरी और तुम्हारी बात है,, सोच का ।
रही बात आपकी मेरे ख़ुश होने की तो आप केवल शारीरिक बनावट के आधार पर अंतर करते हो । पता नहीं हर पुरुष सोचते हैं या आप ही ,,,, । हम दोनों का रिश्ता एक-दूसरे की आवश्यकता पर बने हैं । जो सुख और भूख आपको चाहिए वो मुझे भी । कितना दें पाते हैं,,,, ये आप ही जाने । कुछ लोग पूरी जिंदगी अपने अहसासों से निकल नहीं पाते हैं । ऐसे में क्या कहें । "
इतना सुन के दिनेश चुप हो गया । मानों कोई झन्नाटेदार थप्पड़ जड़ दिया हो । ऑ॑खें दिखा रहे थे ।
कुछ कहते सरिता गुस्से के भाव में फिर बोल पड़ी -
" महानता इसमें नहीं है कि अपनी नजरों और सोच में बड़े हो । किसी का दिल भी जीत के दिखाओ तो जाने । " इतना कहकर करवट बदल ली ।
वह निरूत्तर हो गया । सरिता को देखने लगा । कितनी गहराई और दर्द को छुपाएं रहती है । मेरे बारे में इतनी सोचते हैं और मैं,,,, कभी सोच ही नहीं पाया ।
खुद से सवाल करने लगे ।
सरिता कहने के लिए कह तो दी लेकिन डर रही थी । कहीं बुरा मान ना जाय । कभी जुबान नहीं खोली थी । ना जाने आज कैसे दिल की बात जुबां पे आ गई ।
दिनेश ख़ुद को हारा हुआ मान रहा था । दुनिया को अपनी ही नजरों से देखते थे । कितना बुरा इंसान हूॅ॑ जो गलत धारणा बना के जी रहा था । वह अंदर ही अंदर आत्म-ग्लानि महसूस कर रहे थे । इतने करीब में था उसे ही समझ नहीं पाया हूॅ॑ और दावा कुछ ज्यादा करता था ।
इतने दिनों से मैं धोखे में था ।
उस दिन से दिनेश उसे समझने की कोशिश करने लगे । धीरे-धीरे बाहरी दुनिया को छोड़ दिया और सरिता से ढ़ेरों बातें करते । जिससे सरिता की ख़ामोशी टूटने लगी । उसे जिस चीज की तलाश थी । उसे मिलने लगी ।
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