चिड़िया निकल गई है

सूर्य की किरणे
उतर रही है
धीरे -धीरे
पर्वतों से मैदानों पर
पेड़ों से पत्तों पर
नीचे उतर रही है

धरती भी 

खींच रही है

अपनी ओर
फैल गई  है
रोशनी चहुओर
देखो ! सुबह हो गई है

चिड़िया भी
निकल  गई है
नील गगन में
उड़ रही हैं
पंखों को फड़फड़ा कर
कोयल गीत गाती है
कू-कू की मधुर
स्वर में
सबको जगाती  है
चलों ! उठो सुबह हो गई है

गौरैया आंगन में आ के
फुदक रहे हैं
मानों स्वागत में
नाच रहे हैं
रात भर की सोई जिन्दगी
देखो ! आंगन में
खुशी मना रही है
जीने की चाह में
हृदय मचल रही है
चलों ! उठो सुबह हो गई है

अपने एहसासों को
नया आयाम दे
मेहनतकशों को काम दे
किस्मत को आ सवार ले
फैल गई है रोशनी
आ के देख ले

रोशनी की चाह
किसे नहीं है
क्या ! तुम्हें लेना नहीं है
खाट में बैठ के
जम्हाई न ले
हो गई सुनहरी रोशनी
लेना है तो ले ले

और देखो
ये अब तुम्हारे घर के
छत पर आ गई है
तो चलो ! नींद-चैन त्यागो 
और देखो सुबह हो गई है

---राजकपूर राजपूत''राज''

चिड़िया/निकल/,गई/है




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