अंधेरे को चीर अब रौशनी चाहिए
अंधेरे को चीर अब रौशनी चाहिए
मजबूत रहे इरादें और क्या चाहिए
ना डर इन आंधियों से तू कभी भी
झुकेगा ये ज़माना और क्या चाहिए
उठा ना सके पूरी लंका पैर अंगद का
राम नाम पे भरोसा और क्या चाहिए
तन्हाई का आलम भी बिसर जाएगी
दीदार हो महबूब का और क्या चाहिए
अपनी लाचारी में बेसुध होकर सो गए
बहाना मिला पीने का और क्या चाहिए
बेशक इस सफ़र में फूल है कांटे है "राज़"
तेरा साथ मिला मुझे तो और क्या चाहिए
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