bazaar-on-poem hindi
बाज़ार में रखी हर चीज़ बिकाऊ है
जिसका प्रदर्शन
छोटी और बड़ी दुकानों में होती है
सड़क किनारे बिकते हैं कपड़े
धूल खाते हुए
और लोग आंकते हैं
उसकी बनावट को
उसके रंग और सजावट को
उसके बाद तय की जाती है
कीमत
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ऊँची सोच, ऊँचे ख्याल वाले लोग
अपने जेब में रखी पैसों से
कीमतों का निर्धारण करते हैं
(दिखावटीपन में सही
ऊँच नीच में सही)
अपनी हैसियत जान के
सड़क किनारे लगी दुकानों से
अलग हो जाते हैं
किसी बड़ी दुकानों के
शीशें में बंद
लाइट और डेकोरेशन से
चमचमातें कपड़े
आँखों को नचा जाते हैं
ऐसे में लोग
कपड़े नही देखते हैं
अपनी जेब देखते हैं
और निर्धारण कर लेते हैं
कपडे़ कीमती है तो
क्वालटी तो होगी
ठीक ऐसे ही
सड़क किनारे
धूल खाते कपड़ों के
खरीददार सोचते हैं
अपने जेब में बचे पेसों से
सस्ता है लेकिन
कपड़ा अच्छा है
और लोग इसी तरह
खरीदते हैं
अपने जेबों की हैसियत से!!!
बाजार में हर कोई उतर गए हैं
बस बोली लगाने की जरूरत है
खरीदने की जरूरत है
बिका हुआ ईमान
जिसकी नहीं कोई पहचान
खरीददारी करने वाले
कोई ही सब कुछ जान !!
किसी को लग सकता है
उसकी कीमत ऊंची है
लेकिन खरीदने वाले से
हैसियत छोटी है !!
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