नैतिकता - व्यक्ति और समाज

Lekh-hindi-naitikata हर देश काल में,, हर परिस्थिति,,हर हाल में,  नैतिकता समाज द्वारा स्थापित किया जाता है । जिसका आदर उस परिवेश में जीवित व्यक्तियों द्वारा पालन किया जाता है । जिसके दायरे में रहकर जीया जाता है  । जिंदगी अपनी । 

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प्रचलित नैतिकता ही उस देश व काल का आदर्श है । जिससे व्यक्ति सम्मान की प्राप्ति करते हैं । कोई भी समाज उसके पालन पर जोर देते हैं । जिससे बहुसंख्यक रूप में व्यक्तियों द्वारा पालन किया जाता है । जिस समाज व देश में स्थापित नैतिकता का पालन ज्यादा संख्या में लोगों द्वारा किया जाता है । उस समाज की नैतिकता बन जाती है । और पूरे समाज की पहचान भी । 

जो नैतिकता प्राचीन काल में उस परिस्थिति अनुसार सर्वसम्मत थी । उस समाज का आर्दश था । उसके पालन में शांति का अहसास था । उस समय स्थापित नैतिकता को भंग करने की हिम्मत किसी में नहीं थी । जो तोड़ने की कोशिश करते थे । उसे समाज का कोपभाजन का शिकार होना पड़ता था । जो असहनीय स्थिति थी । किसी के लिए । इसलिए नैतिकता का अवहेलना करने की कोशिश नहीं करते थे । 

प्राचीन रीति-रिवाज, सोच, परंपराए समाज द्वारा संचालित था । 

समाज का इतना महत्त्व था कि उस समय के बुरे लोग भी अपने लिए नैतिक मूल्यों को बचा कर रखते थे ।समझ बना के रखते थे । चाहे रावण हो या कंस । जिसे आधुनिक युग के कुछ लोग अपना भी आदर्श मानते हैं । जबकि रावण और कंस उच्च नैतिक मूल्यों को प्राप्त नहीं किए थे । केवल प्रचलित नैतिकताओं में से कुछ अंश । उस काल के दुराचारी लोग थे । अपने स्वार्थ और अहम को इतने अहमियत दी कि वही उसके लिए पतन का कारण भी बने । जिसे लोग अपनी सुविधा में तारीफ़ करते हैं । क्योंकि उच्ची नैतिकता की प्राप्ति आजकल के लोगों के लिए अत्यन्त कष्टप्रद है ।

आज के आधुनिक युग में भी लोग अपने सोच और स्वार्थ को इतने अहमियत देते हैं कि उसके लिए समाज का कोई मायने नहीं है । 

समाज या देश काल से उपर उसकी जिंदगी है । जो कुछ हद तक जायज़ है । समाज को भी हक़ नहीं है कि किसी की जिंदगी में दख़ल दें । जब तक कोई व्यक्ति समाज का अहित न करें ।

व्यक्तिवादी सोच 

व्यक्ति वादियों को भी अपनी नैतिक जिम्मेदारियों का निर्वाह करना चाहिए । ताकि पहचान पा सके , अपनी  हर बातों पे, हर चीज़ों पर , स्वयं के स्वार्थ को अपनी सुविधा से जोड़ कर देखने से उसकी अहमियत खो जाती है । जो आजकल दिखाई देती है । जिसे वर्तमान समाज भी स्वीकार कर चुके हैं और समाज के भीतर ही व्यक्तिवादी घुस चुके हैं । जिससे समाज की न तो पहचान है और न ही व्यक्ति की ।जिसके कारण आजकल सभी भय खाते हैं । डर जाते हैं एक दूसरे से । क्योंकि उसकी नैतिकता और समझ स्पष्ट नहीं है । दिल के इरादे छुपे हुए हैं । जिसे समझ नहीं पाते हर कोई । लेकिन सचेत ज़रूर है । जो चलन के हिसाब से जायज़ है । आजकल हर जगह दिखाई देते हैं लोग बिना नैतिकता के । बिना पहचान के ।

अत्यधिक नैतिकता जीने नहीं देती है ,  खुलकर । किसी कार्य के चुनाव में दबाव में आ जाते हैं । जिसके कारण अपनी जिंदगी को स्वतंत्रता नहीं दे पाती है । जिससे जीवन बोझिल हो जाता है । जब तक नैतिकता का समर्थन कोई न करे । जिससे प्रोत्साहित नहीं हो पाते हैं । अकेले जीवन जीने के लिए तैयार रहना पड़ता है । यदि नैतिकता के पालन में खुशी है तो ठीक है । उसे आत्मविकास के लिए पालन किया जा सकता है । यदि किसी दूसरे द्वारा भी मान्यता मिले कहना ,या चाहना मुर्खता है । 

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