Kavita-hindi-prem-ki-
दुनिया को जरूरत है
प्रेम की
ताकि लगा रहे
अपने कामों में
अपनो के बीच में
प्यार बांटते हुए
सुकून के साथ
रिश्तों के बीच में
टिका रहे
इस दुनिया में
मुस्कुराते हुए
हर पल !!!
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समझ तो नहीं पाया
प्रेम
उसकी गहराई
उसकी बसावट
लेकिन ठहरा तो लगा
सबसे सुरक्षित
पूर्णता का अहसास
जिसमें जीया जा सकता है
जीवन
सरलता से !!!
चौखट पे
पैर रखते ही
लोग
प्रेम को
घर के किसी कोने में
छोड़ देता है
उपेक्षित
गैर-जरूरी चीजों की तरह
यही सोचकर
ज़रूरत नहीं
और निकल आते हैं
गली चौराहे पे
मतलब और स्वार्थ पूर्ति में
जैसे समझदार हैं
सब !!!!
लोग परेशान नहीं हैं
उसकी ख्वाहिश परेशान है
लालच, मतलबी, गला काटने की प्रवृत्ति
जिसकी होती नहीं पूर्ति !!!!
दुनिया तो मतलब निकाल कर भूल गए
हमने तो ज़रूरत के उस पार तक चाहा
जैसे जिंदगी जरूरी है
वैसे तुम !!!!
पहले भी खुश थे
लोग
जब पगडंडी पर चला करते थे
पैदल ही साथ साथ चला करते थे
वक्त था
एक राह पर
बतियाते थे
जुड़ते थे
आपस के दुःख तकलीफों से
सफ़र में कुछ बातें जरूरी थी
आज वक्त नहीं
डामर की सड़कें
मोटर साइकिल की रफ्तार
सफ़र को छोटा कर दिया है
और समय को भी !!!!
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