The end of the world - article सृष्टि का अंत और इंसान
धरती का अंत -इंसानो की भूख से होगी । इंसान अपने स्वार्थ के लिए कुछ भी करेगा । जिससे पेड़ पौधो से लेकर समस्त जीव जंतुओं को अपने स्वार्थ पूर्ति के लिए ख़त्म कर देंगे ।
जहॉं लोग जानवरों को खाना अपना हक या व्यक्तिगत रूचि कह कर समाज को ठेंगा दिखा देते हैं । जिसे समाज मान्यता देती है और किसी जानवर का जीवन उसकी दया दृष्टि पर निर्भर करता है तो क्या जानवरों के प्रति प्रेम उसके हृदय में बच पाएंगे । नहीं ना । बच पाएंगे तो केवल इंसान की भूख ।
The end of the world - article
नई सृष्टि और हाईब्रिड
फिर वही हाईब्रीज, या अन्य वैकल्पिक व्यवस्था करेंगे । आज के वैज्ञानिक जमाने में । मुर्गी-मछली आदि से लेकर पेड़-पौधे का कृत्रिम बीज का निर्माण होना शुरू होगा । जहाँ हर चीज़ नकली होगी । और इसका निर्माण प्रारंभ हो गया है ।
ठीक इसी तरह अब इंसान भी झूठे हैं । उसकी सारी रचना कृत्रिम रूप से निर्माण है । सच का समर्थन सुविधा में करते हैं । सब अपनी -अपनी मर्जी चलाते हैं । यहाँ कोई किसी को नहीं सुनते हैं । हर चीज़ में मतभेद है । स्वीकार केवल समान विचारधारा के लोगों का है । बाकी के लिए नफरत है । एक दूसरे को स्वीकार करना मुश्किल जान पड़ता है । प्रेम का अभाव दिखाई देता है ।
सृष्टि अपने हिसाब से
उसके तर्क बुध्दिमता की है लेकिन होशियारी से । नैतिक बातों के बहाने से , स्वार्थ की पूर्ति की जाती है । बहलाने के लिए अच्छी बातों का समर्थन करते हैं । जिससे समाज में उसकी बातों पे वजन आ जाता है ।
लेकिन दोगलेपन की चादर ओढ़े व चुपके-चुपके अपने इरादों की प्राप्ति की जाती है । ताकि लोग न समझ सकें ।
आजकल ऐसे हथकंडे सभी लोग अपनाते हैं । क्योंकि वो जानते हैं कि व्यक्तिगत सफलता ही सबकुछ है और स्वयं का विकास उसके अधिकार है । जिसे वे सहज ही कर सकते हैं । भले ही दुनिया कुछ भी समझें । नाक ऊंची करके चलेंगे । दुनिया का गला काटने के बावजूद । इस तरह से प्रदर्शित करेंगे खुद को । मानो कोई महान कार्य किया है । शर्म आती नहीं है और आए भी तो क्यों ? हम लोग भी ललचाते हैं । उसके धन दौलत से । शायद ! हम ही समर्थन कर जाते हैं । ऐसा करके नैतिक स्वीकृति देते हैं ।
यदि मेरा उक्त कथन सच हो गया है तो निश्चित ही इंसान मर गया है । जिसमें अब दया-धर्म, प्रेम, करूणा आदि का अहसास नहीं हैं । इसलिए कोई किसी के लिए खास नहीं है और इंसान मर गए हैं,, धीरे-धीरे ! एक-दूसरे के लिए ।
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---राजकपूर राजपूत''
1 टिप्पणियाँ
बहुत बढिया
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