The Poem Looks Very Nice Kavita
गरीब आदमी का
धूप में रहकर
मेहनत करना
एक-दो रुपये जोड़कर
बच्चों के लिए
कपडे़-खिलौनें लेना
और उसकी मुस्कान देख
ऐसा लगना,जैसे
भीषण गर्मी में
शीतल पानी का
मिल जाना
बहुत अच्छा लगता हैं
एक मजदुर का जब
कपकपी ठंड़ में
ऊंगलियों का टेढा़ हो जाना
इसके बाद भी
उसका फावडा़ पकड़ के
मिट्टी को गुंथ देना
बुढे़ माँ-बाप के लिए
नये शाल-स्वेटर देना
और उसकी पथराई आंखों से
ढेरो दुआऐं लेना
बहुत अच्छा लगता हैं
एक किसान का
उमस भरे दिनों में
बदन का काला हो जाना
नंगे पैरों से
कांटों भरे राहों से
मुस्कुराते हुए चलना
मुसलाधार बारिशों को
अपने हंथेलियों से रोक देना
और सारी दुनिया को खिलाना
बहुत अच्छा लगता हैं
एक साहसी जो
हर वो चुनौती को
जिसे लोग डरकर
छोड़ देते हैं
जिसे करो तो
दुनिया धक्का देती है
और उसका बेपरवाह
चलते जाना
भयंकर तुफानों से टकराकर
अपनी कस्ती को
किनारे लगाना
बहुत अच्छा लगता है !!!
The Poem Looks Very Nice Kavita
वो विद्वान की तरह
बातें करें सियान की तरह
देखी है जिसने देश में
भूख, बेरोजगारी, महान की तरह
ख़ुशी देख न पाएं कभी
सियासी बुद्धि अनजान की तरह !!!!
उसके पास तर्क है
इसलिए फर्क है
उसकी विद्वत्ता
चालाकी से उपजी है
इसलिए उसका ज्ञान नर्क है !!!!
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---राजकपूर राजपूत''राज''
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