बेफिक्र गुजरें थे कई पल बचपन के
जहाॅ॑ झुक जाते थे कई डाल पेड़ के
हमारी हॅ॑सी-मुस्कान थे गुलाब फूल के
तुमने भी देखें होंगें वो कागज़ कस्ती के
पानी की धार में बहाते वो पल मस्ती के
खिल उठते थे सभी चेहरे मेरी बस्ती के
गिल्ली डंडा जहां खेले वो पेड़ है गस्ती के
जाने कहां खो गए दिन अब मेरे जिंदगी के
कोई लौटा दो वो मासूम दिन मेरे बचपन के
टीप-गस्ती= एक छायादार पेड़ का नाम
- राजकपूर राजपूत'राज'
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