खेत के मेढ़ पे बैठा हुआ poem on farmer in hindi

poem on farmer in hindi 
खेत के मेढ़ पे बैठा हुआ किसान
 


खेत के मेड़ पे बैठा हुआ किसान
धान के बालियों को देख, मुस्कूराता हुआ किसान

याद आई उन दिनों की धूप
जब निकले रक्त पसीने बनकर खूब
गरजते-तड़कते बरसते बादल भी खूब
बनाती थी धूप,बदन पे काले-काले निशान
धान के बालियों को देख.............

लगा आज जैसे,झूठ था धूप का निशान
देखा जो धान के बालियों का शान
देख-देख देते थे,अपनी मूंछों पे नई तान
धान के बालियों को देख.............

नहीं चाहिए किसी की दया दृष्टि तू जा
हमें तो भरोसा है अपने भुजा में तु जा

बैलों की जोडी़ है अपनी
माँ के आंचल में रहना मेरा काम

poem on farmer in hindi

इतने बरसों से पाले-पोसे

धरती माँ तुझे प्रणाम
हल-कूदाल-फावडा़ है अपनी शान
धान के बालियों को देख.........

दिल में हिलोर उठे, जागे कई नए अरमान
घर में भर दूंगा कई नए-नए समान
खुब पढ़ाऊंगा बच्चों को, देखेगे सारा जहान
चिंता अब बिसरत है, दिए धरती माँ ने वरदान
धान के बालियों को देख..............

प्यास भर आई, देख धान के बालियों को
भूल बैठे , ज़माने के दुःख दर्द को
पुरवाई से न जाने क्यों ? शरमा गई ये बालियाॅ॑
छूकर-चूमकर चली  गई बदन कुंवारियां
अभी मत छेड़ो समय न हुआ है जवान
धान के बालियों को देख............


बाहर पानी की बूंदें 
टिप-टिप गई 
और एक किसान 
अनुमान लगा रहा था 
वर्षा की 
एक एक बूंद से 
कितना भरा होगा 
मेरी खेत !!!!

---राजकपूर राजपूत

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