कन्डेक्टर ने वादा किया था कि वह उन दोनों को सीट जरूर दिलाएंगे । कुछ देर बाद उसने उसकी पत्नी को सीट तो जरूर दिला दी, लेकिन राजीव को नहीं ।
उसने जब कहा-
"मेरे लिए सीट कहाॅ॑ है.? मुझे भी तो सीट दिलाओ !!"
"देख नहीं रहे हो । कितना भीड़ है ! इसके बावजूद तुम्हारी पत्नी को सीट में बैठाया हूॅ॑, यह कम है ।"
खिसयाते हुए कहा ।
जिसे सुन वहाॅ॑ खड़े हुए दूसरे सवारियों में से किसी ने कहा -
" सीट ही में बैठ कर जाना था तो किसी दूसरे बस में जाते । इंतजार करते,,, घंटों,,। इसमें क्यों बैठ गए और एक तुम ही नहीं जिसे सीट ना मिला हो । "
जिसे सुन कन्डेक्टर मुस्करा दिए । उसकी हॅंसी में अजीब-सा अवहेलना थी । मानों कह रहा था कि तुम जैसे लोगो को मैं रोज झेलता हूॅ॑ ।
राजीव खुद को ठगा और बेवकूफ-सा महसूस कर रहे थे । लेकिन इस बात पर संतोष था कि उसकी पत्नी को कम से कम सीट मिल गई है ।
जो पीछे की सीट में बैंठी थी । जिसे वह देखने की कोशिश कर रहे थे मगर भीड़ की वजह से दिखाई नहीं दे रही थी । दोनों ओर की सीटों पर नजर दौड़ाई लेकिन समझ नहीं आया । वह धीरे-धीरे बस के पीछे की ओर आने लगा था । दोनों ओर की सीटों को बार बार झांकते हुए । मुश्किल से वह पीछे की ओर आ पाया ।
उसकी पत्नी सीट पर नहीं बैंठी थी । खड़ी थी । पीचके हुए । कुछ बुढ़ी औरतें भी थी । जिसके बीच में फंसी हुई थी । बस हिचकोले खा रहे थे । कभी इधर,,,कभी इधर,,लहराआ रहे थे । खुद को सम्भाल पाना मुश्किल हो रहा था ।
पास आके राजीव ने कहा-
"तुम कैसे खड़ी हो..! तुम्हें तो सीट मिल चुकी थी । "
"इस बेचारी की तबीयत खराब थी । इसलिए मैं उठ गई । "
उस लड़की की उम्र अभी ज्यादा नहीं हुई थी ।लगभग चौबीस-पच्चीस की रही होगी । पत्नी को खड़ी
देख उसे बहुत दुःख हो रहा था ।
"मुझे नहीं लगता कि इसका तबीयत खराब है । ये नाटक करके बैंठी है । इससे ज्यादा तो इन बुढ़ी औरतों को सीट की जरूरत थी । जिसे बहुत दिक्कत हो रही है ।"
राजीव अपनी पत्नी से बातें कर रहे थे । जिसे उस लड़की ने सुन ली ।
"आपको शर्म नहीं आती है । एक लड़की जिसकी तबीयत खराब है । जिसे खडे़-खड़े सफ़र करने में बहुत तकलीफ़ होगी । उसके बारे में ऐसे सोचते हुए । "
उसके बाद क्या था..! चारों ओर सभी ने उसकी आलोचना करने लगे । लड़की शाय़द उसी शहर में काम करती है । जिस शहर में राजीव जा रहे थे । उसके और भी साथी लोग बैठे थे ।जिसकी ऊॅ॑ची आवाजों में राजीव की बातें दब गई । जिसमें से एक ने कहा-
" बहुत तकलीफ़ है बेचारे को । जिसकी वजह से कह रहे हैं । सबको तो सफ़र करना है । जैसे ये अकेले खड़े हैं । और भी लोग हैं जिसे तकलीफ़ नहीं । इसे ही क्यों..? "
छोड़ो यार ! बेचारे को खुद की चिंता है । हम नहीं खड़े हैं क्या ! जब उसकी पत्नी ने ही सीट दिया है तो फिर इसे क्या तकलीफ़ है.! "
किसी दूसरे ने कहा ।
राजीव भी अपनी बात ऊंची आवाज में कहने लगे और बस में हो-हल्ला होने लगे । कोई उसकी बातों को सुनने के लिए तैयार नहीं था । लड़की अब चुप हो गई थी ।उसे किसी की परवाह नहीं थी । मतलब निकालने में माहिर थी शायद ! समझदारी अपनी सुविधा की जिंदगी को मानती थी ।
जिसे सुन कन्डेक्टर ने कहा-
" ये आदमी जब से बस मैं चढ़ा है तब से परेशान कर रहा है । शांत रहो आप लोग । "
कन्डेक्टर की बातों में राजीव के प्रति नफ़रत साफ झलक रही थी । वो अब मानसिक रूप से थक रहा था । ऐसा लग रहा था इन लोगों को समझाना कठिन है । केवल जिंद करना जानते हैं ।शोर की बातों से डराते हैं । सच से नहीं,,, और वो चुप हो गया । उसकी पत्नी डर रही थी कि इतने लोग हैं और राजीव अकेले कहीं मार पीट ना कर दें ।
जब वो लड़की उस शहर में बस से उतरी तो राजीव को देख मुस्कुराई और उसके साथी कह रहे थे । बहुत मजा आया । लड़की जाते समय उसको देख के हाथ हिला कर अलविदा कही । मानों कह रही थी हमें याद रखना ।
वे लोग अपनी चालाकियों से खुश थे । उस बस में बैठे कुछ लोग सभी बातों को समझ रहे थे लेकिन उनकी भीड़ देख बीच में कहने की हिम्मत नहीं हुई । शायद बदमाशों को देख के समझदार लोग नहीं बोलते हैं । लेकिन राजीव ऐसा नहीं था ।
-----राजकपूर राजपूत
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