भाषा का पतन लेख Decline of Language Article

Decline of Language Article 

भाषा की मृत्यु वही से शुरू हो जाती है । जब लोग अपनी विद्वत्ता का मापदण्ड अन्य भाषाओं पर महसूस करते हैं और अपने शब्दों में वजन करने के तौर-तरीकों के रूप में अपनाते हैं । अपनी छोटी बोली , भाषा को अवहेलित करते हैं । प्रभावशीलता में कमी और अपनी मातृभाषा में हीनता महसूस करते हैं । तब मातृभाषा के कई शब्दों को मस्तिष्क भुलने लगते हैं । उसकी उपयोगिता और महत्ता दोनों नगण्य लगते हैं । क्योंकि जिस वजनी भाषा को स्वीकार करते हैं। उसमें स्वयं  को सभ्य और शिक्षित मानने में गर्व महसूस होता हैै । 
ऐसा महसूस करने वाले अपनी मातृभाषा से घृणा भाव रखते हैं । हालांकि उसकी परिवरिश मातृभाषा मेंं ही हुआ था । फिर भी उसका प्रयास यही रहता है कि वह अपनी हीनता को अपने नई पीढ़ी में ना आ जाए । इसके लिए घर का माहौल और परिवेश ही उस भाषा के अनुकूल बनाते  हैं । जिस भाषा से लगाव,सम्मान की अनुभूति होती है । अपने बच्चों और घरों में स्वयं बोलते हैं तथा दूसरों को बोलने के लिए प्रेरित करते हैं । जिससे छोटे बच्चें में कई वस्तुओं का शब्द और मस्तिष्क का चित्रण उस परिवेश में बोली जाने वाले शब्दों के अनुरूप नहीं होते हैं । चुंकि अपनी मातृभाषा के शब्दों से पहचान नहीं होने की वजह से यदि उसे कोई किसी वस्तु को अन्य नामों से पुकारे तो उसे अर्थ ग्रहण करने में अव्यवहारिक लग सकता है तथा उसके उच्चारण वाले ग्वार । क्योंकि बचपन से ही उसे यही बताया गया है ।

Decline of Language Article


अपने आस पास के माहौल या जरूरतों में जिस भाषा का प्रयोग ज्यादा करते हैं । तब भी लोग अनायास ही मूल भाषा से दूर होने लगते हैं ‌। अपने साधारण बोलचाल में ही अन्य भाषाओं को अनजाने रूप में व्यक्त करने लगते हैं ।  
घरों में टीवी, स्कूलों की पढ़ाई-लिखाई से लेकर जिंदगी की जद्दोजहद में की जाने वाली अन्य भाषाओं का असर हमारे अंदर कब आया.. पता नहीं चल पाता । 
कभी खुद ही किसी वस्तु को पुराने नामों से जानने का प्रयास करते हैं तो उसका अर्थ भिन्न प्रतीत होता है । अटपटा जान पड़ता है । कभी यादों में फिरेंगे या अपने दोस्तों से बातें करेंगे तब हमारे बीच ही कई शब्दों के अर्थ और चित्रण वर्तमान स्थिति में अनुपयोगी,अप्रासंगिक लगने लगता है । सामने वाले को समझाने में दिक्कत होती है ।  क्योंकि वह भी उस शब्द का उच्चारण अब कम ही करते हैं या फिर नहीं ।
आज की परिस्थितियों में जहाॅ॑ तक (कुछ लोगों को छोड़कर) मेरी सोच  है कि सभी की भाषाओं में अपनी बोली छूट रही है । स्थानीय भाषा और बोली अपना अस्तित्व की लड़ाई में पिछड़ गई है । क्योंकि बड़ी भाषा को छोटी भाषा स्वयं में शामिल कर लेती है लेकिन छोटी भाषा को बड़ी भाषा स्वीकार नहीं कर सकता। 
हम अंग्रेजी में अपनी स्थानीय बोली का प्रयोग करेंगे तो लोग हॅ॑स देंगे । लेकिन वही व्यक्ति अपनी बोली में अंग्रेजी शब्दों को शामिल करेंगे तो लोगों का मुंह खुला रह जाएगा । आज जाने अनजाने हम सभी लोग ही अपनी भाषा और बोली को प्रश्रय नहीं दे रहे हैं । हम ही लोग हैं जो स्थानीय भाषा और बोली में अन्य भाषाओं के शब्दों को शामिल कर रहे हैं । जिससे मूल भाषा के शब्द कही खोते जा रहे हैं। 
भाषा का पतन तब हो जाती है जब किसी अन्य भाषा का महत्व स्वयं की मातृभाषा से ज्यादा देते हो । हार जाती है मातृभाषा । 

भाषा की मृत्यु 
उस दिन से हुई 
जब हमने पढ़ना सीखा 
दूसरी भाषा 
महत्व के हिसाब से 
गैर लोगों से 
संबंध स्थापित करने के लिए 

और गैर लोगों को 
पढ़ने की जरूरत नहीं थी 
हमारी भाषा !!!!!

इन्हें भी पढ़ें 👉 जब इरादे बदल जाते हैं 
-राजकपूर राजपूत''
Reactions

एक टिप्पणी भेजें

2 टिप्पणियाँ