Poem on Asking Questions अपने अपने ढंग से परिभाषा करना ,, नयापन नहीं है । जब तक जानने की जिज्ञासा न हो और प्रश्न पुछना - छुओ और भागों है । मुर्खों का मज़ाक उड़ाना भी है । यदि उत्तर मिलने के बाद आत्मसात न हो । संतुष्ट न हों । ऊपर से फिर से प्रश्न पुछना - भद्दा मज़ाक । प्रश्न का स्तर बताएगा कि मुर्ख है या जिज्ञासु ।
Poem on Asking Questions
सोया है सारा जहाॅ॑ जागा कौन है यहाॅ॑?
प्रश्न बने सारी दुनिया उत्तर है कहाॅ॑?
हर लफ्ज और रिश्तें में आदमी है खडा़
जैसी जिन्दगी गुजरें ऐसी अक्लमंदी है कहाॅ॑?
बडे़ शान से उतरते हैं महंगी गाडि़यों से वो
टिप्स देते है वेटरों को पूछों माॅ॑-बाप है कहाॅ॑?
मिल जाते है कई आशिक होटलों और ढाबों में
गली-गली घुम के खोजों लैला-मजनू है कहाॅ॑?
कहते है सुबह की इबादत शूकुन लाती है दिल में
उठते ही नेटवर्क खोजे पीर आऐगी कहाॅ॑?
तुम इधर सुन रहे थे अपने हुक्मरानों की बात
कोहराम मचा है घर में रोटी-सब्जी है कहाॅ॑?
हर शक्स के दिल में ईमान बन गया है लूट
देना ही पडे़गा रिश्वत जाओ!शिकायत करोगे कहाॅ॑?
करे क्या राज जमाने की आदत है खराब
दौड़ते-फसते-गिरते जिन्दगी पूछे रूकना है कहाॅ॑?
नव निर्मित बोधिसत्व
अन्य धर्म पर प्रश्न करता है
ठीक एक मुस्लिम
सियासी एजेंडे से
अन्य पर
बेटा, बाप पर
बाप, बेटा पर
नालायक होने का आरोप लगाता है
इस तरह से
बाप, बेटे एक दुसरे के लिए
मुर्ख है
और स्वयं के विचार
प्रगतिशील !!!!
मंहगाई वहां भी थी साहब
जिसे हमने जरूरी खर्चे समझकर
जोड़ते नहीं है
हिसाब-किताब में
एक पांव दारू
पान मसाला, गुटके
चाय शक्कर
गांजा बीड़ी सिगरेट तंबाकू में
लेकिन हमने इसे अनैतिक मान बैठे हैं
आवाज़ उठाई तो
गलत आदमी कहें जाएंगे
इसलिए
टमाटर की मंहगाई पर रोते-बिलखते हैं
कितना दोगलापन है
तथाकथित बुद्धिजीवियों, साहित्यकारों में !!!!
-----राजकपूर राजपूत "राज"
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