विरह और मिलन Virah Oar Milan Kavita

 Virah Oar Milan Kavita 
  ( १)

🌹🌹विरह🌹🌹

प्रेम में बहुत कुछ
छिपाना पड़ता है
जमाने को कहाॅ॑
दिखाना पड़ता है
जो ना समझे उसे
कहाॅ॑ समझाना पड़ता है
दर्द हो सीने में तो
यूॅ॑ ही मुस्कुराना पड़ता है
रात गुजरते हैं
रोते- रोते और
दिन में ख्वाबों को
सजाना पड़ता है
विरह की अग्नि में
इस तन को रात- दिन
जलते जाना पड़ता है
हाॅ॑,प्रेम में बहुत कुछ
छिपाना पड़ता है !!!

Virah Oar Milan Kavita

    (२)
🌹मिलन 🌹

प्रेम में बहुत कुछ 
दिखाना पड़ता है
जब मिल जाए मीत तो 
दर्द दिखाना पड़ता है
तुम आएं क्यों मेरे जीवन में
रो-रो के शिकायत-
करना भी पड़ता है
ये कशक, ये चुभन
और ये तन्हाई
उसके सामने
बिसर जाना पड़ता है
उसकी राहों में ही
मुरझाए फूलों को भी
खिल जाना पड़ता है
जिसके सफर का 
मंजिल प्रेम हो
प्रियतम के बाहों के सिवाय
उसे और कहाॅ॑ जाना पड़ता है
हाॅ॑, प्रेम में अपना
अस्तित्व मिटाना पड़ता है  !!!

मैं जान गया था
ये शहर है
मैं जब गांव से शहर आया था
मेरी मां ने कहीं थी
शहर बुरे होते हैं
पग-पग ठग मिलते हैं
अब शहर में आ गया हूं
सम्हाल कर चल रहा हूं
मेरी मां जैसा ख्याल
इस शहर में कौन रखेगा !!!!

संशय


काम जहां करता हूं
पैसों तक आशा करता हूॅं
घर उनका बनाऊंगा
पैसा मैं कमाऊंगा
रिश्ते-नाते यहां
इसी शर्तों से बने हैं !!!!

मिलकर बिछड़ गए
कब चाहा और कब मर गए
जिसे समझते रहे अपना
वो हाथ छुड़ा कर निकल गए !!!

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___राजकपूर राजपूत "'राज'"

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