Avlamban
मेरा प्रेम
मेरे अंतरतम में
सोया था
बरसों से
बिना अवलंबन के
खोया था
स्वयं में
उदासियाॅ॑ छाई थी
इस भीड़ में
तनहाई थी
बस नज़रें
तलाश रही थी
मेरा प्रेम
अवलंबन होने को
और तुम आ गए
मेरे जीवन में
एक रौशनी की तरह
समा गए
हृदय में
तेरा चेहरा
तेरी ऑ॑खें
तेरे होंठ
गुलाब की
पंखुड़ियों सी
जिसमें खुशबू थी
जीवन का
मतलब ना रहा
जमाने का
मेरे जिस्म में
रौशनी फैल गई
मेरी तनहाई
मिट गई
मेरा प्रेम का
अवलंबन मिल गया
हाॅ॑.! जब से
तुम मिल गए हो
__ राजकपूर राजपूत
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