Who Spoke the Truth here Poetry
न्याय के नाम पर व्यक्तिगत विचार को परिभाषित करना
न्याय व्यवस्था में दादागिरी है । जहां धीरे धीरे न्याय व्यवस्था व्यक्तिगत विचारों में परिवर्तन होने लगता है । एक बार किया गया फैसला । न्याय का प्रतिमान रूप में स्थापित हो जाता है । जिसके आधार पर अन्य न्याय कर्ता अपना निर्णय देते हैं ।
डरा हुआ या लालच में डूबा हुआ आदमी से न्याय की उम्मीद करना उस डरा हुआ आदमी के डर को स्वीकार करना है और उस न्याय कर्ता द्वारा अपना डर को सौंपना या थोपना है ।
अपने एजेंडे को थोपने के लिए जागरूक न्यायकर्ता न्याय न करके अन्याय ही करता है । जो न्याय के प्रति समर्पित न हो कर अपने एजेंडे को स्थापित करते हैं !!
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Who Spoke the Truth here Poetry
सत्य यहां बोले कौन
भीष्म पितामह क्यों है मौन
महान द्रोणाचार्य बोलो है कौन
अपनो के बीच घिरी द्रौपती
भरे सभा में उसे लाया कौन
द्रौपती की लाज को रखकर
दुष्टता का पासा फेका कौन
खुद की दांव लगाते क्यों नहीं
द्रौपती का अस्तित्व नकारा कौन
जांघ ठोककर बोले दुशासन
सिर झुकाएं देखों !बैठा कौन
भरे दरबारी हॅ॑सी उडा़ऐ
ऑंखों में पट्टी बांधी कौन
भरे अट्टाहास दुर्योधन के ऑंखों में
नमक चखा जिह्वा सत्य यहां बोला कौन
मृत पडे़ हैं न्याय- मुर्ती इस सभा में
ऊॅ॑चे आसन में अंधा बैठा कौन
लाज राखों मेरी हे!गिरधारी
तेरे सिवाय इस जग में सुनता कौन !!!!!
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