Dedication and Thirst Poem समर्पण और प्यास-- जहां है । वहां प्यार है, आस्था और विश्वास है । जिसमें समर्पण के भाव आ जाता है । वे स्वयं के अस्तित्व को भूल जाते हैं । उसके विश्वास और आस्था किसी अन्य चीजों को स्वीकारते नहीं है । उसके एक दर्शन के लिए लालायित रहते हैं । यही प्यास जब तक न मिले तब तक बनी रहती है । जब मिल जाते हैं तो प्यास मिट जाती है । इस पर कविता 👇👇
Dedication and Thirst Poem
समर्पण और प्यास
समर्पण (१)
क्यों प्रेम में स्वयं मिट जाते हैं ?
जैसे धरती की परिक्रमा में
चन्द्रमा घट -बढ़ जाते हैं
क्यों प्रेम में स्वयं मिट जाते हैं?
जैसे चाॅ॑द की रौशनी में
सितारें का अस्तित्व खो जाते हैं
पुष्प की चाहत अद्भुत
ईश्वर के चरणों में
स्वयं बिछ जाते हैं
दीपक की लौ में
जैसे पतंगें जल जाते हैं?
बसंत के स्वागत में
क्यों पेड़ों से पत्तें टूट जाते हैं?
सागर की तड़प लिए
नदियाॅ॑ दौड़ जाते हैं
क्यों प्रेम में स्वयं मिट जाते हैं?
प्यास (२)
एक दिन की पूर्णता बहुत
चाॅ॑द को मिल जाय
प्यासी नदी की प्यास है
सागर में मिल जाय
बिखर गए वो पत्तें
बसंत के संग पेड़ सवर जाए
सितारों की चाह है
चांदनी की रौशनी मिल जाय
पुष्प है अर्पित इसलिए
जीवन सफल हो जाय
जल गए पतंगें इसलिए
दीपक की लौ मिल जाय
एक दिन की पूर्णता बहुत
चाॅ॑द को मिल जाय !!!
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____राजकपूर राजपूत'राज'
बेमेतरा, छत्तीसगढ़
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