Love, Life and Society प्रेम , जीवन

 Love, Life and Society kavita  

 प्रेम 

बिना मिले चाहते रहना 

अत्यंत सरल है 

प्रेम का अहसास 

यदि दिलों में हो 

दोनों तरफ से तो 


जैसे शहर, या ससुराल चलें जाने के बाद 

स्मृति में सजी रहती है 

अपनापन का अहसास 

जीवन-भर 


प्रेम 

यदि एक तरफा हो 

अत्यंत कठिन हो जाता है

 

स्मृतियों में याद आना 

उसका 

जिसके हृदय में 

अपनापन नहीं हो 

फिर भी 

अपने ही अहसासों में 

बसाकर जीना 

रिश्ता निभाना 

अंततः व्यक्ति और हृदय 

या फिर प्रेम मर जा

ता है 

सदा के लिए !!!!!

 Love, Life and Society kavita

मौसम बदल जाएगा 

फिर आ जाएगा 

जैसे तारीख में गिनती 

महीने में आ जाती है 


लेकिन अहसास नहीं होते हैं 

खास नहीं होते हैं 

वहीं 

एक बार बदल जाने के बाद 

आदमी

 

मौसम की तरह 

वहीं अहसास नहीं दिला पाते हैं !!!!


कितना सरल हो जाता है, प्रेम
बिना व्याकरण के
बिना अलंकार के
बिना समास, संधि विग्रहों के
जुड़ जाते हैं
साधारण बोलचाल में
बिना सजावट के
तुम कहो या मैं
समझ जाते हैं,, बातें
अन्तर्मन की
कितनी निश्चित
आत्मिक रूप से
प्रेम !!!!

सहसा जीवन बदला
महसूस होने लगा मुझे
हवाओं का स्पर्श
पेड़ पौधों का हरापन
आकाश का सुनापन में
पूर्णता

क्योंकि तुम आए थे जीवन में
नए अहसास लेकर
नवजीवन देकर
समाएं रहे सदा
हृदय में
जहां भी गया
तुम साथ रहे
दुनिया की बातों से अलग
तुम्हारी दुनिया !!!!

छुपाया तो जा रहा था

लेकिन मुझे
कुछ और दिखाया जा रहा था
शब्दों का मिठास
व्यवहार में विश्वास
दिखाया जा रहा था
आजकल का चलन है
चालाकियों का फ़ैशन है
बताया जा रहा था
लेकिन छुपाया जा रहा था
असल चरित्र
जिसके इरादों से समझा गया
वास्तविक चित्र
जिसे छुपाया जा रहा था !!!!

डर जरूरी था 

लेकिन डरे नहीं है 

किसी भगवान से 

किसी भावनात्मक लगाव से 

झुकाव से 


वे डरें नहीं चोरी करते हुए 

वे डरें नहीं रिश्वत लेते हुए 

गरीबों ने बद्दुआएं दीं 

लेकिन भावनात्मक रूप से 

लिए नहीं 


वे डरें नहीं झूठ बोलते हुए 

पकड़े जाने की परवाह नहीं की 

खुद को समझाते हुए 

इश्क और सियासत में सब जायज़ है 

कहते हुए 

माइंड सेट कर लिया 

आधुनिकता के नाम पर 

खुद को स्वतंत्र सोच का बताते हुए 

करता रहा अपराध 

पुराने दृष्टिकोण से 

जैसे बिल्ली काट देती है रास्ते 

(जो कि रूढ़िवादी है 

समाज की मान्यता)

ठीक वैसे ही 

पाप पुण्य 

जिसे माना नहीं 


आधुनिकता की उपयोगिता 

में जायज़ नहीं है 

व्यक्ति स्वयं का विकास में अंधा 

सफलता मिलना जरूरी है 

एक बनिए की तरह 

शामिल किए काले धंधे को 

व्यक्ति

गत जीवन में 

शिक्षित होकर भी !!!!!

 


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