बुद्धिजीवियों का दोगलापन intellectuals-fiction-article

-बुद्धिजीवी का ज्ञान-

intellectuals-fiction-article परंपराएं, मान्यताएं बनती और बिगड़ती है । जो कल अच्छा लग रहा था । वो आज फीके हैं । आदमी बिन परंपरा, मान्यताओं के जी नहीं सकते हैं । पुराने छोड़ रहे हैं तो नए अपना रहे हैं । जैसे आजकल जन्मदिन, शादी की सालगिरह, रिसेप्शन, नए साल का जश्न आदि ।

अब पाखंड, झूठ, तमाशा, पुराने परंपरा, मान्यताओं को तो कह सकते हैं लेकिन आधुनिक परंपरा, मान्यताओं को गर्व से मनाते हैं । इसे आत्मनिर्भर या समझदारी का काम कह सकते हैं । इसलिए लोग करते हैं । शिक्षित होने का ढोंग ।

कोई चीज़ , रीति रिवाज, परंपराएं मान्यताएं पाखंड तभी कहा जा सकता है जब उसके मूल उद्देश्य, महत्व, भाव को न समझकर सिर्फ़ लकीर खींच कर चलते हैं । और जानते कुछ भी नहीं है । 

कुछ लोगों का ज्ञान हमेशा नफ़रत से जुड़ा होता है ।

 जब भी मुंह खोलेगा । घृणा, भड़कानेवाला,जलाने वाला, थकाने वाला भावनाओं का होता है । जिसे सुनकर गुस्सा और नफ़रत बढ़ती है । लेकिन ये लोग खुशी मनाते हैं । इनकी बातें दुश्मनों के समझ जाने पर । दुश्मन समझ तो जाते हैं लेकिन तर्क नहीं दे पाते हैं । ऐसे में और इसका ज्ञान बढ़ जाता है । जिससे और नफरती शब्दों को ढूंढते हैं ।

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 पकड़े गए तो अपने समर्थकों की सहायता से बेचारे ज्ञानी बनने का ढोंग करते हैं । जबकि ये लोग दोगले और कायर होते हैं । जो केवल सहनशील और उदार समाज तथा व्यक्तियों को निशाना बनाते हैं ।

 जो इनकी बातों में सच्चाई ढूंढते हैं । सच मानकर ताली बजाते हैं । कभी इनपर संदेह नहीं करते हैं । आंख मूंद कर भरोसा करते हैं । ऐसे लोगों की वजह से ऐसे तथाकथित बुद्धिजीवियों का हौसला बुलंद रहते हैं । जिसे समझना सबको जरूरी है । ताकि समय रहते ऐसे ढोंगी बुद्धिजीवियों को उसकी औकात दिखाई जा सकें । ध्यान रखना ऐसे बुद्धिजीवी हमारे आसपास ही मौजूद हैं ।  जो बोलते, लिखते हैं । केवल हमारे लिए। अपने गिरेबान में झांकने की हिम्मत नहीं होती है । खुद को ऐसे पेश करेंगे मानों दूध का धूला हो ।।।

मेंढ़क निकल ही आया

जो घुसा था

दो फीट जमीन के नीचे

पहली बरसात में ही

बताने के लिए 

 चिल्लाने के लिए

वो बादल को पुकार रहा है

बरसात के लिए

उसके टर्राना

गवाही है

अब बरसात होगी

उसके चिल्लाने से !! !!

किसी पूर्वाग्रही की तरह

तुम्हारे सोचने के तरीके

जीने के तरीके

जिससे बाहर निकल नहीं पाएं कभी

किसी के बताएं अनुसार

तुम्हारे सोचने की प्रवृत्ति

बुद्धिजीवी होने के बाद भी

संकुचित है !!!!


कोई आए या न आए

मेरे गांव में

लेकिन एक वर्ग जरुर आता है

वो है कबाड़ी वाला

जो कबाड़ी खरीदता तो नहीं

लेकिन कबाड़ी समान छोड़ जाते हैं

हर घर में !!!!


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-rajkapur rajput

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