अब मैंने भी जीना सीख लिया है

लोगों इस तरह से मतलब निकालते हैं ।life learned poem  अपना पराया नहीं पहचानते हैं । जिसे हम अपना मानते हैं  । वहीं जरूरत के समय हाथ छुड़ाकर चले जाते हैं । मतलब निकालने का चलन इस तरह सबको भाया । कोई पहचान भी नहीं है । किस आदमी से कब कैसा व्यवहार करना है । दगाबाजी को जीन का सार मानते हैं । व्यक्तिगत जीवन में व्यक्तिगत लाभ प्रमुख चरित्र बना चुके हैं । पढ़िए इस पर कविता 👇

life learned poem 


अब मैंने जीना सीख लिया है
तेरी बेवफ़ाई को देख लिया है

पागल था तुझपे एतबार किया
खुद से प्यार करना सीख लिया है

आधियाॅ॑ भी अब रुख़ मोड़ लेगा
बाजुओं से लड़ना सीख लिया है

उम्मीद नहीं मुझे यहॉ॑ किसी का
सफर में चलना सीख लिया है  !!

मैंने जीना सीख लिया

जहर पीना सीख लिया
लोग मतलब निकाल कर थक गए
मैंने देना सीख गया
जान के सिवा और क्या मांगेंगे
मैं मरना सीख गया
प्यार में पागल हूॅं
बार-बार हारना सीख गया
वो छुपाते रहे अपने इरादे
मैं समझना सीख गया
उसकी औकात आसमां तक
चांद सितारों को तोड़ना सीख गया
अभी भरोसा क़ायम है
समय का इंतजार सीख गया
लोगों की बातें अनसुनी कर दी 
समझदारी सीख गया 
अभी वो समझदार नहीं है
चुप रहना सीख गया  !!!

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---राजकपूर राजपूत''राज''

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