निर्लिप्तता का अर्थ -लेख

 

nirliptata-ka-arth-निर्लिप्तता अर्थात आसक्त न होना । किसी वस्तु किसी चीज के प्रति । मोह माया में न फंसना है । उसकी सुखानुभूति/दुखानुभूति में खुद को शामिल न करना है । 

ऐसा भाव तभी आएगा जब हम उस ईश्वर या इस सृष्टि के रचयिता को जान पाएंगे । उसकी प्रकृति को समझ पाएंगे । यहां हर क्रिया के पीछे एक कारण है । जिसके पीछे उस सत्ता का संचालन है । जिसे पूर्ण समर्पण के साथ स्वीकार कर पाएंगे । खुद के भीतर विराजमान "मैं" केवल भाषित है । मेरे द्वारा कुछ भी नहीं हो रहा है । 

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हमारी दृष्टि उस निर्माता की दृष्टि समान होना चाहिए । साथ ही साथ आदर भी ।आदर कहने का मतलब है,, उस सत्ता की स्वीकारोक्ति से है । जिसने बनाया है । जो तटस्थ है । लेकिन उपस्थित सभी जगह है । यहां तक की स्वयं के भीतर और बाहर भी । बस रंग रूप आकार आदि में अंतर है । लेकिन शक्ति एक है । जो हमारे क्रियाशीलता का कारण है । बाह्य रूप केवल छलावा । जब ऐसी दृष्टि मिल जाएगी तो निश्चित ही निर्लिप्तता आ जाएगी । हर सुख/दुःख हमें बांध नहीं पाएंगे । तटस्थ होकर हमें देखना जब आ जाएगा । समझो इस दुनिया में निर्लिप्तता के गुण आ जाएगी । 
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