literature-genre-just-leisure-not-gets-poetry अनपढ़ शब्द कब हमारी अवधारणा की डिक्शनरी में असभ्य हो गए हैं। पता ही नहीं चला । जबकि वे लोग पढ़ें लिखे लोगों को बहुत सम्मान करते थे । पढ़ें लिखे लोग अपना स्टेटस अलग है कहकर अलगाव का भाव पैदा करते हैं ।
अनपढ़ भी आजकल उन चालाकियों को समझते हैं जिसे चालाक और पढ़ें लिखे लोगों द्वारा सभ्यता पूर्वक करते हैं । जैसे रिश्वत चाय पानी के नाम पर लेते हैं । नहीं देने पर नियमों का हवाला देकर परेशान करते हैं । जिसका सबसे ज़्यादा शिकार अनपढ़ ही होते हैं । पढ़ें लिखे लोग ही सिस्टम पर बैठे हुए हैं । बहानेबाजी और दोहरे मापदंड अनपढ़ों को थकाते हैं ।
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जिन चालाकियों को पढ़ें लिखे लोग समझदारी का मापदंड मान बैठे हैं । उन्हीं चालाकियों को अनपढ़ लोग भी अपनाने लगे हैं । बस डरते हैं तो उन बातों से कि पढ़ाई लिखाई का सार्टिफिकेट उनके पास नहीं है । जिससे उन्हें सफलताएं नहीं मिलती हैं ।
अच्छे-बुरे सभी जगहों पर हैं । बस हमारी धारणाएं ज़्यादा संख्या के आधार पर बनते और बिगड़ते हैं ।
बस फुर्सत नहीं मिलती है
इस लिए मिल नहीं पाते हैं
यही दुनिया से शिकायत रहती है
जबकि
आज भी छुट्टियां होती है
हर दफ्तर में
इतवार के दिन
या सेकेंड शनिवार को
कभी पर्व पर
कभी स्वयं ही ले लेते हैं
छुट्टियां
लेकिन मिलते नहीं है
किसी से
क्या मतलब ऐसे रिश्तों से
छुट्टियों का मतलब है
देर से सोकर उठना
फेसबुक, वाट्सअप का स्टेटस देखना
उन्हीं रिश्तों का
जिससे कभी मिलते नहीं
दिन गुजर जाता है
शाम को पीकर सो जाता है
अपने तक सीमित
हर व्यक्ति !!!
फुर्सत है तो प्रेम करो
व्यस्त हो तो काम करो
निठल्ले लोग लेकिन मत बनो !!!
निठल्ले आलसी लोगों का काम है
जो बिन कहे कुछ कर नहीं सकता है
खालीपन में भी व्यस्त होते हैं
यह बताने के लिए
जताने के लिए
यही कि काफी महत्वपूर्ण है
उसके लिए
आलसीपन में सोना
सबकुछ खोना !!!!
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