जैसा सोचता था । वैसी नहीं है दुनिया ।

 जैसा सोचता था । वैसी नहीं है दुनिया ।
The-world-article-is-not-what-I-used-to-think हर इंसान की यही शिकायत रहती हैं कि दुनिया बुरी है । जबकि दुनिया अच्छी है । पेड़ भी अच्छे हैं । जीव जंतु भी अच्छे हैं ।पर्वत भी अच्छे हैं । नदियाँ भी अच्छी हैं । धरती भी अच्छी है, आकाश भी अच्छा है ।अपनी प्रकृति में हैं । जो निर्धारित है । उसमें स्थिर है । 

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बुरे हैं तो केवल इंसान जिसकी शिकायत जाती नहीं है । दुनिया से । अपनी ही भावनाओं और सोच में लोग इतने उलझे हुए रहते हैं कि उसे पता भी नहीं चलता है कि वह खुद दुनिया के लिए कब बुरे हो गए हैं । दुनिया को सुधारने के लिए निकल तो जाते हैं मगर खुद का ध्यान नहीं रख पाते हैं । वो कर क्या रहे हैं  ? 
अपने व्यक्तिगत विचारों को (जो कुछ भी हो सकते हैं) थोपने लगते हैं । पूरी दुनिया पर । 
अपने असंतोष प्रवृत्ति की वजह से पूरी दुनिया को गलत साबित करने में लगे रहते हैं । 
ताज्जुब तो यह है कि इसी शिकायत में मर भी जाते हैं । अपने ही असंतोष में । 

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