सब कुछ यही है Kavita-hindi-prem

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सब कुछ यही है 

 सब कुछ पहले जैसा ही है

ये धरती ये अम्बर,

ये पर्वत, ये मैदान 

न हो तू अनजान

सब कुछ तो यही है

बस तू ही पहचान


ये पेड़ ये पत्ते

ये चॉंद ये सितारे

ये सूरज निराले

ये नदियॉं, ये झील

बस तू ही दिल से मिल


आज भी वहीं ताजगी है

नदियों में वहीं रवानगी है

भौरों में वहीं दिवानगी है

हवाओं में वहीं खुशबू

बस स्पर्श कर ले तू

सूरज में वहीं लाली है

जो न समझे तो खाली है


सब कुछ तो यही है

केवल तू ही नहीं है

तुमने इरादे क्या बदले

ज़माना बदला हुआ समझ बैठे !!!!

Kavita-hindi-prem 

सब-कुछ यही है 

सब-कुछ सही है 

बस तू ही नहीं है 

पेड़ नहीं लगाते हो 

सावन में 

और पेड़ काट देते हो 

फाल्गुन में 

तुम्हारे पेड़ लगाने की बातें होती हैं 

जेठ में 


क्या मिलान है 

आजकल का सोच की 

अतार्किक तुम्हें लगता नहीं 

सब-कुछ यही 

कितना सही !!!!


प्रेम के दिन में 

प्रेम महसूस न हुआ 

जब महसूस न हुआ 

तो तुने जीवन को 

कहां छूवा 


जब दर्द हुआ 

तो प्रेम याद आए 

मांगे और चिल्लाएं 

कितने मतलब पे 

जाग जाते हैं 

लोग !!!!

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