ढोंग वहीं पर नहीं रचते हैं Poetry-is-not-composed-there

 ढोंग वहीं पर नहीं रचते हैं

Poetry-is-not-composed-there 

जैसा कि साहित्यकार कहते हैं

धर्म के अन्दर

कहने बोलने में आसान है

लेकिन भूल जाते हैं

एक साहित्यकार अपना ढोंग

जब कभी भी

महिला दिवस पर जाते हैं

पावडर, क्रीम और लिपस्टिक खूब लगाते हैं

सूट बूट में जाते हैं

बड़े- बड़े व्याख्यान खूब देते हैं

जो भूल जाते हैं आते जाते

रास्ते में कई महिलाएं

जो ईंट पत्थर ढोती हैं

भरी दोपहरी में

कमर में बांधे हुए

अपने बच्चों को

संघर्ष करती है

अपने बच्चे की भविष्य के लिए

जिसके वास्तविकता से कतराते हैं

ऐसे ढोंग करने वाले

साहित्यकार !!!!

इन्हें भी पढ़ें 👉 राम नवमी की शुभकामनाएं 

Reactions

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ