ईश्वर का स्वरूप god-of-existence-article-hindi.
प्रकृति के कारण ही क्रिया / प्रतिक्रिया होती है । जो शामिल हो जाते हैं ।वही भोक्ता है ।जीभ के स्वाद के लिए दौड़ते हैं । कान की बातों में उलझते हैं । आंखों से देखकर भटकते हैं । उसी के पास शिकायतों का अम्बार होता है । जबकि जो तटस्थ हो कर देखते हैं । सोचते हैं । ये सब प्रकृति के कारण हो रहा है । कारण, क्रिया और कर्म को समझ जाते हैं । वही पार पा जाते हैं । सतत जागृत अवस्था में उस चेतन तत्व में समाहित रहते हैं ।
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ऐसे व्यक्ति के लिए जीवन और मृत्यु एक समान है । जहां भी रहे सुख-दुख, सर्दी गर्मी प्रभावित नहीं करते हैं । चित शांत अवस्था में हर क्रिया को कर जाते हैं । विचलित, अशांत, भयभीत, मोह, आदि भाव उसकी स्थिरता को हिला नहीं पाते हैं । जब तक वो अपने चेतन तत्व में स्थित है । जिस दिन उसका मन प्रकृति को चखने की कोशिश करेगी । उस दिन भटक जाएगा और धीरे-धीरे उस ईश्वर को छोड़ प्रकृति में फंस जाएगा ।
लोग अक्सर शिकायत करते हैं कि ईश्वर सामने क्यों नहीं आते हैं? क्या वो डरपोक है? ऐसे नादान लोग खुद को नहीं पहचानते हैं । जिसके भीतर स्वयं ईश्वर बैठा है । यदि नहीं बैठा है तो स्वयं ही ऐसे इंसान बता दें कि वह कौन है ? यदि बता सकता है तो बिल्कुल ईश्वर नहीं है । भगवान से कोई नहीं डरते हैं । डरते वहीं है जो मांगते हैं । ईश्वर से । धन दौलत, वैभव, सम्मान । जबकि ईश्वर किसी को कुछ नहीं देता है । क्योंकि ईश्वर स्वयं आदमी के भीतर ही रहता है ।
यदि कट्टरता से मानते हो कि ईश्वर नहीं है तो फिर सोचों कि इस सृष्टि को संचालित कौन करता है । यदि प्रकृति स्वयं में सक्षम है तो फिर ये सारे खेल उसी का बनाया हुआ है । जो आखिर में समेट लेगा और फिर उत्पन्न कर लेगा । जब इतनी ही जीवन्त रूप है तो निश्चित ही ईश्वर है । जहां तक सवाल उठाने वाले लोगों की दृष्टि पहुंच नहीं सकती है और जहां समझ नहीं पाते हैं, वहां सवाल उठाते हैं ।
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